परमात्मा द्वारा रची गई सृष्टि का आधार समय है । समय चक्र ही सभी वस्तुओं का निर्धारण करता है और समाप्त करता है । इस चराचर जगत की सभी वस्तुएं, पदार्थ, व्यक्ति समय के आधीन है परंतु, समय किसी के आधीन नहीं । समय निरंतर गतिमान है, गतिशील है ।
समय की प्राचीन कालगणना पूर्णतः वैज्ञानिक है और गणित की जटिल रचना पर आधारित है । यह इतनी सटीक है की इससे व्यक्ति संसार की सबसे छोटी इकाई अणु से लेकर संसार की सबसे बड़ी इकाई परम पिता ब्रह्मा जी की आयु भी जान सकता है ।
परम पिता ब्रह्मा जी |
पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कंध के ग्यारहवें अध्याय में श्री शुकदेव जी द्वारा समय की गणना का विस्तार रूप से वर्णन किया गया है ।
ब्रह्मा जी की उत्पति
श्री हरि विष्णु अविनाशी है, अजन्मा है और प्रलय काल में एकार्णवर्ण के जल में शयन करते है । जब श्री हरि के मन में सृष्टि रचने के इच्छा जाग्रत होती है तो उनकी नाभि से एक कमलदल प्रकट होता है जिससे ब्रह्मा जी की उत्पत्ति होतीं है । ब्रह्मा जी अथक तपस्या करने के उपरांत श्री नारायण के दर्शन प्राप्त करते है और उनकी आज्ञा अनुसार सृष्टि का सृजन करते है ।
ब्रह्मा जी का जन्म |
समय की सूक्ष्म इकाई का वर्णन
समय की सबसे छोटी इकाई परमाणु है जिसका काल 1 सेकंड का 37964 वां हिस्सा होता है । दो परमाणुओं के मिलने से एक अणु बनता है और तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है इन्हें सूर्य की उन किरणों के द्वारा देखा जा सकता है जो खिड़की के झरोखे से प्रकाश के रूप में कमरे में गिरती है । सूर्य की किरणों को ऐसे तीन त्रसरेणु पार करने मे जितना समय लगता है उसे त्रुटि कहते है । त्रुटि एक सेकंड का तीन सौवा (300) भाग होता है ।
त्रुटि का सौगुना काल वेध कहलाता है । तीन वेध का एक लव होता है और तीन लव का एक निमेष होता है और तीन निमेष का एक क्षण होता है । तीस (30) क्षण का एक विपल होता है और साठ (60) विपल का एक पल होता है ।
सूक्ष्म समय गणना |
साठ (60) पल के बराबर एक घड़ी होती है । एक घड़ी चौबीस (24) मिनट की होती है । ढाई घड़ी के बराबर एक होरा होता है जो एक घंटे के बराबर होता है । एक दिन और रात में 24 होरा अर्थात 24 घंटे होते है ।
इसी क्रम में सात दिवस का एक सप्ताह निर्धारित किया गया है । भारतीय काल गणना मे 15 दिवस का एक पक्ष माना जाता है । विद्वानो ने एक मास के दो पक्ष निर्धारित किए है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । य़ह पक्ष चंद्रमा की घटती और बड़ती हुई कलाओं द्वारा निर्धारित किए गए है ।
चंद्रमा की कलाएं |
मनुष्यों का एक मास पितरों का एक दिवस कहलाता है । कृष्ण पक्ष मे पितरों का दिन और शुक्ल पक्ष मे पितरों की रात्रि होती है । दो महीनों की एक ऋतु होती है और तीन ऋतुओ अर्थात छह महीनों का एक अयन होता है । दो अयनौ का एक वर्ष माना जाता है । अयन का निर्धारण सूर्य की स्तिथि के द्वारा किया गया है ।
एक वर्ष में दो अयन होते है, उत्तरायण और दक्षिणायन, जब सूर्य, मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे उत्तरायण काल कंहा जाता है और जब सूर्य, कर्क राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे दक्षिणायन काल कहा जाता है । 14 जनवरी से 21 जून उत्तरायण का समय होता है और 22 जून से 13 जनवरी दक्षिणायन का समय होता है ।
उत्तरायण का समय देवताओं का दिवस होता हैै और दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्री होती है । देवताओं का एक दिवस मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है । मनुष्यों के 360 वर्ष की अवधि देवताओं का एक वर्ष होतीं है ।
चार युगों की अवधि का वर्णन
सृष्टि की रचना करते समय परम पिता ब्रह्मा जी ने समय को चार युगों सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग मे विभाजित किया था ।
श्री ब्रह्मा जी |
एक कलयुग की अवधि चार लाख बत्तीस हज़ार वर्ष (4, 32, 000) की होती है । मनुष्यों के 360 वर्ष देवताओं के एक वर्ष के बराबर होते है, इस अवधि को देवताओं का दिव्य वर्ष कहा जाता है अतः एक कलयुग मे देवताओं के 1200 दिव्य वर्ष होते है ।
द्वापरयुग की अवधि कलयुग से दो गुनी अर्थात आठ लाख चौसठ हजार वर्ष (8, 64, 000) की होती है । द्वापरयुग में देवताओं के 2400 दिव्य वर्ष होते है ।
त्रेतायुग की अवधि कलयुग से तीन गुनी अर्थात बारह लाख छियानवे हजार वर्ष (12, 96, 000) की होती है । त्रेतायुग में देवताओं के 3600 दिव्य वर्ष होते है ।
सतयुग की अवधि कलयुग से चार गुनी अर्थात सत्रह लाख अट्ठाइस हजार वर्ष (17, 28, 000) की होती है । सतयुग में देवताओं के 4800 दिव्य वर्ष होते है ।
युगों की अवधि |
मन्वंतर का वर्णन
जब समय सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग का एक चक्र पूर्ण कर लेता है तो उसे एक चतुर्युग कहा जाता जिसकी अवधि तिरतालिस लाख बीस हजार (43, 20, 000) वर्ष होती है । जब चतुर्युग इकहत्तर (71) बार बीत जाते है तो एक मन्वंतर होता है । प्रत्येक मन्वंतर की अवधि (71) इकहत्तर चतुर्युग की होतीं है । ब्रह्मा जी के एक दिवस मे चौदह (14) मन्वंतर होते है । प्रत्येक मन्वंतर में एक मनु उत्पन्न होता है और उनके नाम से उस मन्वंतर का नामकरण किया जाता है ।
प्रत्येक मन्वंतर के आरंभ में नए इन्द्र, सप्त ऋषिियों का आगमन होता है । मन्वंतर के पूर्ण होने पर पुराने मनु, इन्द्र आदि देवता और सप्त ऋषि ब्रह्मा जी मे विलीन हो जाते है । इस काल में नए राजाओ और नई प्रजा का जन्म होता है ।
परम पिता ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना करने से अभी तक छह मन्वंतर बीत चुके है और वर्तमान मे सातवां वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है जिसके मनु सूर्य पुत्र विवस्वान है । वर्तमान समय के इन्द्र का नाम पुरंदर है और ऋषि अत्रि, गौतम, वसिष्ठ, भारद्वाज, विश्वामित्र, कश्यप, और जमदग्रि इस वर्तमान वैवस्वत मन्वंतर के सप्त ऋषि है ।
भगवान ब्रह्मा जी |
ब्रह्मा जी के एक दिवस मे चौदह (14) मन्वंतर होते है । इनके नाम इस प्रकार है ।
- 1= सवायम्भुव मन्वंतर
- 2= स्वारोचित मन्वंतर
- 3= उत्तम मन्वंतर
- 4= तामस मन्वंतर
- 5= रेवत मन्वंतर
- 6= चाक्षुष मन्वंतर
- 7= वैवस्वत मन्वंतर (वर्तमान मन्वंतर)
भविष्य के मन्वंतर के नाम
- 8= सावर्णी मन्वंतर
- 9= भौत्य मन्वंतर
- 10= रोच्य मन्वंतर
- 11= ब्रह्मसावर्णी मन्वंतर
- 12= रुद्रसावर्णी मन्वंतर
- 13= मेरु सावर्णी मन्वंतर
- 14= दक्ष सावर्णी मन्वंतर
प्रायः सभी मन्वंतरो के अंत में सृष्टि और प्रजा का संहार होता है और नए मन्वंतर के आरंभ में श्रीं हरि विष्णु अवतार लेते है और धर्म और सृष्टि को पुनः स्थापित करते है । वैवस्वत मन्वंतर के प्रारंभ में भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर पृथ्वी का उद्धार किया था इसलिए इस कल्प को श्वेत वाराह कल्प के नाम से जाना जाता है ।
भगवान वाराह |
वर्तमान में वैवस्वत मन्वंतर का अट्ठाइसवा (28) कलयुग चल रहा है और ब्रह्मा जी अपनी आयु के पचास (50) वर्ष पूर्ण कर इक्यावनवे (51) वर्ष मे सृष्टि की रचना मे लीन है ।
कल्प का वर्णन
ब्रह्मा जी का एक दिन कल्प कहलाता है यह समय की सबसे बड़ी इकाई है । जब चौदह (14) मन्वंतर और छह (6) चतुर्युग पूर्ण जाते है तो ब्रह्मा जी का एक दिन पूर्ण होता है इसी को कल्प कह्ते है ।
एक मन्वंतर मे इकहत्तर (71) चतुर्युग होते है और चौदह (14) मन्वंतरो मे 71×14= 994 चतुर्युग होते है और छह (6) चतुर्युग का संधि काल होता है। इसी क्रम में एक कल्प में 994+6 =1000 एक हजार चतुर्युग होते है ।
एक चतुर्युग की अवधि तिरतालिस लाख बीस हजार वर्ष (43,20, 000) की होतीं है । अतः एक कल्प की अवधि 43, 20, 000×1000 = 4, 32, 000, 000 चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष की होती है । यह समय परम पिता ब्रह्मा जी का एक दिन कहलाता है इसके उपरांत ब्रह्मा जी की रात्रि शुरू हो जाती है जो इतनी ही लंबी होतीं है । ब्रह्मा जी की रात्रि मे पृथ्वी पर जीवन का अंत हो जाता है, इसे नित्य प्रलय कह्ते है । ब्रह्मा जी की रात्रि की अवधि समाप्त होने के पश्चात ब्रह्मा जी पुनः जगते है और पुनः सृष्टि की रचना करते है ।
धार्मिक ग्रंथो में ब्रह्मा जी की आयु सौ (100) वर्ष की बताई गई है । अपने सौ वर्ष के जीवन में ब्रह्मा जी हर रोज सृष्टि की रचना करते है । ब्रह्मा जी का एक दिन एक कल्प कहलाता है जिसमें एक हजार (1000) चतुर्युग होते है, इसी क्रम में ब्रह्मा जी के एक वर्ष में तीन सौ पेसठ (365) कल्प होते है जो तीन लाख
पेसठ हज़ार चतुर्युगौ के बराबर है । अतः ब्रह्मा जी के सौ वर्षों में छत्तीस हज़ार पांच सौ (36500) कल्प या तीन करोड़ पेसठ लाख चतुर्युग होते है । यह इतनी लंबी अवधि है की कोई भी यंत्र इस संख्या के वर्षो की गणना नहीं निकाल सकता ।
यह अवधि पूर्ण होने पर ब्रह्मा जी की आयु पूर्ण हो जाती है । ये महाप्रलय का समय होता है । इस समय सम्पूर्ण ब्रह्मांड जलने लगता है । संहार के देवता सदाशिव आकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड को भस्म कर देते है ।
भगवान शिव |
इसके उपरांत ब्रह्मा जी, सभी देवता और सम्पूर्ण सृष्टि श्री हरि विष्णु में वीलीन हो जाती है । ईश्वर की माया से सृष्टि में सभी और जल ही जल व्याप्त होता है । उसी एकार्णवर्ण के जल में नारायण अनेक कल्प तक शयन करते है ।
श्री नारायण |
श्री नारायण अजन्मा और अविनाशी है इसलिए सहस्रों चतुर्युग बीतने पर जब उनके मन मे पुनः सृष्टि रचने के इच्छा जागृत होती है तो उनकी नाभि से पुनः कमलदल प्रकट होता है और ब्रह्मा जी का जन्म होता है । तदुपरांत, ब्रह्मा जी पुनः नारायण की आज्ञा से सृष्टि की रचना में लीन हो जाते है ।
श्री हरि विष्णु |
काल गणना (संक्षेप में) :
- 2 परमाणु = एक अणु
- 3 अणु = एक त्रसरेणु
- 3 त्रसरेणु = एक त्रुटि
- 100 त्रुटि= एक वेध
- 3 वेध = एक लव
- 3 लव = एक निमेष
- 3 निमेष = एक क्षण
- 30 क्षण = एक विपल
- 60 विपल = एक पल
- 60 पल = एक घड़ी
- ढाई घड़ी = एक होरा
- 24 होरा = एक दिन - रात (24 घंटे)
- 7 दिवस = एक सप्ताह
- 15 दिवस = एक पक्ष
- 2 पक्ष = एक मास
- 2 मास = एक ऋतु
- 3 ऋतु = एक अयन
- 2 अयन = एक वर्ष
- कलयुग = 4, 32, 000 वर्ष
- द्वापरयुग= 8, 64, 000 वर्ष
- त्रेतायुग = 12, 96, 000 वर्ष
- सतयुग = 17, 28, 000 वर्ष
- एक चतुर्युग = 43,20,000 वर्ष
- 71 चतुर्युग = एक मन्वंतर
- 14 मन्वंतर + 6 चतुर्युग या 1000 चतुर्युग = एक कल्प, ब्रह्मा जी का एक दिवस
- 36500 कल्प = ब्रह्मा जी के 100 वर्ष
- ब्रह्मा जी के 100 वर्ष = महा प्रलय
समय गणना |
।। इति श्री ।।
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