समस्त संसार में आर्यवर्त एक पवित्र धरा है । स्वर्ग लोक के देवता भी इस धरा पर जन्म लेने के लिए लालायित रहते हैं । समय-समय पर अनेक दिव्य विभूतियों ने इस धरा पर जन्म लिया है और इस पवित्र भूमि को और भी पवित्र किया है ।
इसी भारत भूमि पर द्वापर युग और कलियुग के संधि के समय में एक दिव्य विभूति महात्मा शुकदेव जी ने जन्म लिया था और अपनी दिव्य वाणी के द्वारा पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत महापुराण को प्रकट किया था ।
शुकदेव जी के जन्म की कथा
भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त भगवान शुकदेव जी की जन्म की कथा अत्यंत दिव्य है, इस कथा का श्रवण और पाठन मात्र से व्यक्ति के समस्त कष्टों का नाश होता है और प्रभु के प्रति भक्ति का भाव जागृत होता है ।
ईश्वर इच्छा से एक बार माता पार्वती के गुरु वामदेव जी कैलाश पधारे । उन्होंने भोलेनाथ के दर्शन किए और उनकी चरण वंदना की । देवी पार्वती ने उनका अत्यंत आदर सत्कार किया । कैलाश से प्रस्थान करते हुए उन्होंने देवी पार्वती को कंहा कि आप भोलेनाथ के अवश्य पूछे कि वह नरमुंडो की माला क्यों धारण करते हैं?
उनके जाने के उपरांत देवी पार्वती ने महादेव से वह प्रश्न किया । उस समय महादेव ने देवी पार्वती के प्रश्न को टाल दिया परंतु उनके अनेक बार आग्रह करने पर महादेव बोले, हे पार्वती, यह आप ही के नरमुंडो की माला है जिसे मैं धारण करता हू ।
महादेव और देवी पार्वती |
है पार्वती, समय के प्रभाव से आप बार - बार जन्म लेती हो और मृत्यु को प्राप्त करती हो और फिर मैं आपके ही मुंड की माला बना कर उसे धारण करता हू । तब देवी पार्वती ने महादेव से हंसकर प्रश्न किया कि हे प्रभु आपने ऐसा कौन सा कार्य किया हुआ है जिससे आप मृत्यु को प्राप्त नहीं होते?
महादेव बोले, मैंने परम दिव्य अमृतमयी अमर कथा का रसपान किया हुआ है और इसी के प्रभाव से मैं अमर हूं । देवी पार्वती बोली हे प्रभु, मैं आपके मुखारविंद से उस परम दिव्य अमृत कथा को सुनने की इच्छा रखती हूं ।
महादेव और देवी पार्वती |
महादेव बोले हे देवी, जिस कथा को सुनने मात्र से ही प्राणी अमर हो जाता है उसे सुनाने के लिए किसी विशेष स्थान की आवश्यकता है अतः मैं शीघ्र ही आपके समक्ष उस दिव्य कथा का वर्णन करूंगा ।
महादेव द्वारा देवी पार्वती को अमर कथा का वर्णन
महादेव बोले हैं देवी, इस दिव्य कथा का वर्णन करते हुए मैं समाधि की अवस्था में चला जाऊंगा अतः आप बीच - बीच में हुंकार भरती रहना और यह भी सुनिश्चित कर लेना कि आपके और मेरे अतिरिक्त इस स्थान पर कोई अन्य प्राणी ना हो । देवी पार्वती ने सभी पशु - पक्षियों और जीव-जंतुओं को वहां से भगा दिया परंतु उन्होंने उस गुफा में उपस्थित एक तोते के विकृत अंडे पर कोई ध्यान नहीं दिया । इसके अतिरिक्त वहां कबूतरों का एक जोड़ा भी था जिसका देवी पार्वती को आभास नहीं हुआ ।
महादेव, देवी पार्वती को अमर कथा का वर्णन करते हुए |
महादेव दिव्य कथा का वर्णन कर रहे थे और देवी पार्वती बीच-बीच में हुंकार भरकर कथा का श्रवण कर रही थी । अमर कथा के प्रभाव से तोते के उस विकृत अंडे में प्राण शक्ति का संचार होने लगा था ।
अमर कथा के प्रभाव से शुक का जन्म
ईश्वर इच्छा से कथा सुनते हुए देवी पार्वती को नींद आ गई और उनके स्थान पर वहां उपस्थित नवजात शुक हुंकार भरने लगा । जब कथा समाप्त करने के उपरांत महादेव अपनी समाधि से उठे तो उन्होंने देखा कि देवी पार्वती के स्थान पर एक शुक हुंकारे भर रहा है तो वह अत्यंत क्रोधित हो गए । उस शुक का वध करने के लिए महादेव उसके पीछे दौड़े ।
क्रोध मे महादेव |
जब महादेव, शुक के पीछे - पीछे महर्षि के आश्रम में पहुंचे तो वेदव्यास जी ने महादेव को दंडवत प्रणाम किया और उन्हें आश्रम में हिंसा ना करने की प्रार्थना की । वेदव्यास की प्रार्थना से भगवान शिव प्रसन्न हो गए उन्होंने उस शुक के वध करने का विचार त्याग दिया और उन्हें वरदान मांगने को कहां ।
वेदव्यास जी, महादेव से प्रार्थना करते हुए |
शुकदेव जी का जन्म
वेदव्यास जी बोले प्रभु, "मैं आपकी कृपा से श्रीमद्भागवत महापुराण के लेखक का कार्य पूर्ण कर चुका हूं परंतु उस दिव्य कथा का वर्णन करने के लिए मुझे एक योग्य वक्ता की आवश्यकता है ।" महादेव बोले, "देवी वीटिका के गर्भ मे पल रहा यह शुक ही तुम्हारे पुत्र के रूप मे जन्म लेगा और संसार मे भागवत का प्रचार करेगा ।"
वह शुक, देवी वीटिका के गर्भ मे पलने लगा । वह अमर कथा का श्रवण कर अमर हो चुका था और बाहर आकर सांसारिक मोह - माया के बंधन मे बंधना नहीं चाहता था इसलिए नौ महीने की अवधि समाप्त होने के उपरांत भी वह गर्भ से बाहर नहीं आया । उस दिव्य शुक के गर्भ मे होने के उपरांत भी उसकी माता को शारीरिक कष्ट नहीं होता था । वह सूक्ष्म रूप मे ही उस गर्भ मे बारह वर्ष तक रहा । उस शुक ने गर्भ मे ही वेदव्यास जी से शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की ।
बारह वर्षों के उपरांत भी जब वेदव्यास जी ने उसे बाहर आने की प्रार्थना की तो उसने कहां की अगर श्री कृष्ण उसे गर्भ मे दर्शन दे और यह वरदान दे की संसार की मोह - माया का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी वह गर्भ से बाहर आएगा । वेदव्यास जी के आग्रह पर श्री कृष्ण ने उस बालक को गर्भ में दर्शन दिए और सांसारिक मोह - माया से मुक्त रहने का आशिर्वाद दिया ।
तदुपरांत, वह बालक गर्भ से बाहर निकला । गर्भ से बाहर आते ही वह बारह वर्ष के किशोर बालक मे परिवर्तित हो गया ।वेदव्यास जी ने उस बालक का नाम शुकदेव रखा । सांसारिक मोह - माया का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उसने जन्म लेते ही तपस्या करने के लिए वन की और प्रस्थान किया । यद्यपि वेदव्यास जी ने उसे रोकने के अत्यंत प्रयास किए परंतु वह वन चला गया और ईश्वर की तपस्या मे लीन हो गया ।
शुकदेव जी |
वन में वेदव्यास जी के शिष्यों के मुख से भगवान श्री कृष्ण के साकार रूप का वर्णन सुनकर शुकदेव जी अत्यंत प्रभावित हुए । उन्होंने उन शिष्यों से उस श्लोक की अगली पंक्ति सुनाने का आग्रह किया परंतु उन्हें श्लोक की अगली पंक्ति का ज्ञान नहीं था । वह बोले, अगर आपको श्लोक की अगली पंक्ति के बारे में जानना है तो आप हमारे गुरु वेदव्यास जी के पास जाकर पूछिए ।
श्री कृष्ण |
शुकदेव जी ने तत्काल ही तपस्या करना छोड़ दिया और अपने पिता वेदव्यास जी के पास पहुंचे । भगवान वेदव्यास जी ने उन्हें श्रीं कृष्ण के साकार रूप से संबंधित अनेक श्लोकों का ज्ञान दिया । परमात्मा के साकार रूप का वर्णन सुनकर शुकदेव का मन अति प्रफुल्लित हो गया उन्होंने अपने पिता से और श्लोक सुनाने का आग्रह किया । वेदव्यास जी ने उनके समक्ष श्रीमद्भागवत महापुराण के सभी 18000 श्लोकों का वर्णन किया । शुकदेव जी ने भागवत पड़ना अपनी दिनचर्या बना लिया और उसे कंठस्थ कर लिया ।
अपने पिता वेदव्यास जी से श्रीमद्भागवत का ज्ञान प्राप्त करते शुकदेव जी |
श्रीमद्भागवत महापुराण का प्राकट्य
नियति ने अपना कार्य कर दिया था । महाराज परीक्षित अपने पुत्र का राज्याभिषेक कर गंगा नदी के तट पर आमरण अनशन का व्रत लेकर बैठ चुके थे । महर्षि शुकदेव का जन्म श्रीमद्भागवत को संसार के समक्ष प्रकट करने के लिए हुआ था । जब शुकदेव जी को ज्ञात हुआ की परीक्षित एक ऋषि के श्राप के कारण आमरण अनशन का व्रत लेकर बैठ गए है तो वे भी उनके दर्शन के लिए पहुंचे ।
महाराज परीक्षित और शुकदेव जी भगवान कृष्ण के परम भक्त थे । श्रीं कृष्ण ने इन दोनों को गर्भ में ही अपने चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन दिए थे अतः ये दोनों ही माया से परे थे । संसार के कल्याण के लिए महाराज परीक्षित ने शुकदेव से प्रश्न किया की किस प्रकार एक पापी मनुष्य भी सात दिनों के भीतर सांसारिक भव - बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है?
महाराज परीक्षित को श्रीमद्भागवत महापुराण का वर्णन करते हुए शुकदेव जी |
श्री शुकदेव के मुख से संसार के पालक श्री हरि की लीलाऔ और कथाओं का वर्णन सुनकर महाराज परीक्षित के जन्म - जन्मांतर के पाप नष्ट हो गए, उन्हें संसार की नश्वरता का बोध हुआ और ज्ञान की प्राप्ति हुई । श्रीमद्भागवत की दिव्य कथा का वर्णन कर शुकदेव वहां से चले गए ।
देवताओं को श्रीमद्भागवत का ज्ञान देना
शुकदेव जी का विवाह
शुकदेव जी का विवाह देवी पीवरी से संपन्न हुआ । देवी पीवरी के पिता का नाम वहिषद था, वह स्वर्ग के सुकर लोक मे रहने वाले पितरों के राजा थे । पुराणों में शुकदेव के बारह पुत्रों और एक कन्या के जन्म का वर्णन मिलता है । उनके सभी पुत्र धर्म के मार्ग पर चलने वाले सिद्ध साधक थे ।
यद्यपि अमर कथा का पान करने से शुकदेव जी अमर थे परंतु वह मानव देह के बंधनों मे बंधना नहीं चाहते थे और उन्हें मानव देह की नश्वरता का पूर्ण ज्ञान था । उन्होंने मनुष्य जन्म के चारो ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण, और मनुष्य ऋण से मुक्ति प्राप्त की और अपने पिता वेदव्यास जी की आज्ञा प्राप्त कर सुमेरु पर्वत गए । वहाँ उन्होंने ईश्वर के चरणों में ध्यान लगाकर अपने भौतिक शरीर का त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया ।
आज भी शुकदेव जी निराकार रूप में इस जगत मे विद्यमान है । उनके द्वारा वर्णित किया गया श्रीमद्भागवत महापुराण सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है । लोग इस दिव्य ग्रंथ का पाठन और श्रवण कर अपना जीवन सार्थक करते है ।
।। इति श्री।।
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