महाराज पृथु तथा कृषि कार्य का प्रारम्भ



श्री हरि विष्णु ने संसार का उद्धार करने के लिए अनेक अवतार लिए हैं । संसार के कल्याण के लिए प्राचीन काल में भगवान विष्णु ने महाराज पृथु के रूप में अवतार लिया था। पुराणों के अनुसार इनका चरित्र पढ़ना और सुनना अत्यंत कल्याणकारी है । जो व्यक्ति उनके चरित्र का मनन करता है उस के सब प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सब  प्रकार के यज्ञों का फल मिलता है ।

महाराज पृथु की वंशावली 

राजा अंग 
प्राचीन काल में महर्षि अत्रि के वंश में एक प्रजापति उत्पन्न हुए जिनका नाम अंग था । वह अत्री के समान ही प्रभावशाली थे। उनका एक बेन नाम का पुत्र हुआ ।

बेन की माता का नाम सुनिथा था जो काल की पुत्री थी ।  बेन को धर्म के रहस्य का पता ना था वह काम के अधीन होकर लोभ में ही फंसा रहता था । अंग और सुनिथा का वह पुत्र सदैव अधर्म के मार्ग पर ही चलता था ।

अत्याचारी राजा बेन

बेन बहुत बलशाली था । राजा बनने के बाद उसने अपनी प्रजा को बहुत कष्ट दिया । उसने प्रजा के ऊपर बहुत से कर लगा  दिए थे और समस्त प्रजा का वह बहुत शोषण किया करता था। राजा बेन ने अपने राज्य में यज्ञ कार्य भी बंद करवा दिए थे । उसने अपनी प्रजा में घोषणा करवा दी थी कि मैं ही यज्ञ का आराध्य हूं  और मैं ही यज्ञ का फल हूं । समस्त प्रजा को मेरे लिए ही यज्ञ करना चाहिए ।

राजा बेन
बेन का यह कार्य देखकर देवता उस से रुष्ट हो गए थे । उसका यह अनीतिपूर्ण कार्य देखकर ऋषि मरीचि और अन्य बड़े-बड़े ऋषियों ने उसे समझाया कि वह अनीति पूर्ण कार्य ना करें और धर्म के मार्ग पर चलें ।
  
परंतु बल के मध में डूबे हुए बेन ने ऋषियों से कहा,  इस पृथ्वी पर कौन है जो उसके सामने खड़ा हो सकता है । वह बोला, मैं ही धर्म का रूप हूं इसलिए मेरी ही पूजा होनी चाहिए । बेन की बात सुनकर सभी ऋषिगण बहुत क्रोधित हो गए उन्होंने अपनी योग शक्ति से बेन को निर्जीव कर दियाा ।

क्रोध मैं आ कर ऋषियों ने बेन की दाहिनी जांघ को मथना शुरू किया तो उसकी जांघ से अत्यंत काला और मोटा युवक निकला जो बहुत डरा हुआ था । महर्षि अत्रि ने उसे जंगल में भेज दिया । वह निषादों का वंश चलाने वाला बना ।

महाराज पृथु का प्राकट्य 

उस निषाद के रूप में बेन के शरीर से सारा पाप निकल गया था । फिर ऋषियों ने बेन के दाहिने हाथ को मथना शुरू किया तब उस हाथ से अग्नि के समान तेज वाले भगवान विष्णु के अवतार पृथु प्रकट हुए ।

महाराज पृथु
महाराज पृथु दिव्य कवच, बाण और धनुष को लेकर प्रकट हुए थे । उनके धनुष का नाम आजगव था । महाराज पृथु के जन्म से समस्त देवता बहुत प्रसन्न हुए । सभी देवता उनके दर्शन करने के लिए आए । समस्त प्रजागणों में खुशी की लहर दौड़ गई । परम पिता ब्रह्मा जी अन्य ऋषियों के साथ महाराज पृथु के दर्शन करने के लिए आए । ब्रह्मदेव ने  उसी समय पृथु का राज्याभिषेक कर दिया ।

पृथु के प्रजापति बनने से समस्त देवता और उनके प्रजागण बहुत प्रसन्न हुए । वह बहुत न्यायप्रिय और दूरदर्शी राजा थे । वह प्रजा का बहुत सम्मान करते थे । पृथ्वी के सातों द्वीपों पर उनका राज्य था ।

सम्राट पृथु द्वारा संसार का कार्यभार योग्य व्यक्तियों को देना 

प्रजापति बनने के बाद महाराज पृथु ने अपने राज्य का वितरण किया । उन्होंने नक्षत्र, ब्राह्मणों और लताओं के ऊपर चंद्रमा का अभिषेक कर दिया । कुबेर को यक्ष का राजा बनाया, बृहस्पति को विश्वदेवो का और शुक्राचार्य को भृगुवंशीयों का राजा बना दिया । उन्होंने विष्णु को आदित्यों का,  इंद्र को मरूत का और दक्ष को प्रजापतियों का राजा बना दिया । उन्होंने सूर्यपुत्र यम को पितरों का, और शंकर जी को रुद्रो का राजा बना दिया । उन्होंने व्रत, मंत्र, गो और पार्थिव पदार्थ और साध्य देवताओं के पद पर नारायण का अभिषेक किया ।

पृथु द्बारा राज्य का विभाग करना 
                             
संसार के कल्याण के लिए प्रजापति पृथु ने योग्य व्यक्तियों के हाथों में अपने राज्य के विभाग किए थे । उन्होंने पूर्व, पश्चिम उत्तर, दक्षिण में चार दिकपालों की भी स्थापना की थी । पृथु का यह कार्य देख कर समस्त ऋषिगण बहुत प्रसन्न हुए थे । उन्होंने समस्त प्रजागण को कहा, ये महाराज ही आप को आजीविका देने वाले होंगे ।

प्रजापति पृथु का प्रजागणों के लिए कृषि कार्य प्रारंभ करना 

एक बार कुछ प्रजागण उनके पास आए और समस्त प्रजा की आजीविका चलाने का उपाय पूछने लगे । उन्होंने बताया,  समस्त प्रजागण कंदमूल और ना भक्षण योग्य भोजन खाते हैं,  वह पृथ्वी पर जो भी बीज बोते हैं पृथ्वी उन्हें उचित फल प्रदान नहीं करती । पृथ्वी काफी जगह से ऊंची नीची होने के कारण रहने के योग्य भी नहीं है ।

पृथ्वी का महाराज पृथु की शरण मैं जाना 

प्रजाजनों की बात सुनकर महाराज पृथु क्रोध से भर गए उन्होंने पृथ्वी का आह्वान किया और उसे प्रकट करके अपने धनुष बाण से उसे मारने का निश्चय किया । यह देखकर पृथ्वी महाराज पृथु की ही शरण में आ गई और उनसे, उसे ना मारने की विनती करने लगी ।

महाराज पृथु और पृथ्वी 
                          
पृथ्वी ने बताया, की भगवान विष्णु का मधु नाम के दैत्य का वध करने के उपरांत वह मेदनी नाम से इस जगत में प्रसिद्ध है । क्योंकि मधु के शरीर का अस्थि और मैदा (अर्थार्त वसा) इस मेदिनी में जगह - जगह फैला हुआ है । जिस कारण यह कई जगह से ऊंची नीची है और बीज बोने पर भी कोई फल नहीं दे पाती । इसलिए आप मुझ पर कृपा कीजिए और मेरा वध ना कीजिए ।

पृथ्वी को पुत्री के रूप मैं स्वीकार करना 

पृथ्वी बोली भूमि को उपजाऊ और समतल बनाकर बीज बोने से वह उचित फल देगी । पृथ्वी की बात सुनकर महाराज पृथु प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसको अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया । पृथु की पुत्री होने के कारण इस मेदनी का नाम पृथ्वी पड़ा ।

देवी पृथ्वी 
                                          
महाराज पृथु ने पृथ्वी को समतल करने के अनेक उपाय किए उन्होंने देवताओं की सहायता से और यज्ञ से अनेक नए बीजों का आविष्कार किया । पृथ्वी को समतल करने के कारण प्रजा अलग-अलग इलाकों में बसने लगी । समस्त प्रजागणों का जीवन अब शिकार को छोड़कर कृषि पर आधारित हो गया था ।

पृथु द्वारा पृथ्वी को उपजाऊ बनाने के अनेक यत्न 

महाराज पृथु ने समस्त नदियों के जल को सागर तक पहुंचाने का मार्ग बनाया । उन्होंने अपने दिव्य बाणों से समस्त पर्वतों को काट कर छोटा और बड़ा किया । पृथ्वी को उपजाऊ बनाने के लिए महाराज पृथु  ने अनेक यज्ञ किए । उन्होंने सूर्य और चंद्रमा का भी यज्ञ किया था जिससे वनस्पतियों का उचित प्रकार से पोषण हो सके । महाराज पृथु ने पृथ्वी का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए परम पिता ब्रह्मा जी का भी यज्ञ किया था । उसी महायज्ञ से महर्षि सूत जी और माधव जी प्रकट हुए थे । सूत जी और माधव जी ने महाराज पृथु की अनेक प्रकार से स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर महाराज पृथु ने सूत जी को अनूप देश और माधव जी को मगध देश प्रदान किया था ।

महाराज पृथु द्वारा पृथ्वी को दूहना 

महाराज पृथु ने पृथ्वी को गाय माना और मनु को बछड़ा बनाकर पृथ्वी को अनेक प्रकार से दूहा था, अर्थार्त अनेक प्रकार के बीज़ बोये थे और अन्न उगाया था । राजा पृथु के उपरांत      देवताओं, यक्ष, गंधर्व, और राक्षसों ने भी पृथ्वी को दूहा और अपने अभीष्ट फल की प्राप्ति की ।

देवी पृथ्वी गौ माता के रूप में             

प्रजापति पृथु मानव जाति के लिए पृथ्वी पर रहने की उचित व्यवस्था बना कर और पृथ्वी को अनेक आशीर्वाद दे कर अपने निज धाम शीर सागर चले गए । 
                 
पुराणों में कहा गया है कि जो पुरुष महाराज पृथु के चरित्र का श्रवण और मनन करता है वह पुरुष चिरकाल तक इस पृथ्वी में आनंद से जीवन व्यतीत करता है ।

महाराज पृथु  
शब्दकोश
1.प्रजापति - संसार के समस्त राजाओ का राजा
2.कुबेर - धन के देवता
3.यक्ष - स्वर्ग के निवासि
4 विश्वदेव-स्वर्ग के ब्राह्मण
5.विष्णु - 12 सूर्यो मैं एक सूर्य
6.आदित्य - सूर्य
7.मरूत - स्वर्ग के 49 देवता
8 दिकपाल - 4 दिशाओं के प्रधान राजा
9.मनु - संसार के प्रथम राजा
10 निषाद -जंगलों में रहने वाले 

                                ।। इति श्रीं ।।

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