गजेंद्र मोक्ष की कथा

Gajendra moksh ki katha by the truth catcher

गजेंद्र मोक्ष की कथा अत्यंत दिव्य है। यह कथा श्रीमद् भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में वर्णित है। भगवान विष्णु के अनेक अवतारों की कथा सुनने के उपरांत राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से कहां, "मैं आपके श्री मुख से श्री हरि के विभिन्न अवतारों की कथाएं सुन चुका हूं अत: अब आप मुझे गजेंद्र मोक्ष की वह अति दिव्य कथा सुनाइए जिसकी श्रवण मात्र से ही मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है ।" 

शुकदेव जी परीक्षित को कथा सुनाते हुए
शुकदेव जी परीक्षित को कथा सुनाते हुए 

शुकदेव द्वारा गजेंद्र मोक्ष की कथा का वर्णन

शुकदेव जी प्रसन्नतापूर्वक बोले "हे परीक्षित, प्राचीन समय की बात है। क्षीर सागर में त्रिकूट नाम का एक पर्वत था । उस पर्वत पर प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा था । भांति-भांति प्रकार के पक्षी उस पर्वत पर करवल करते रहते थे । वह पर्वत वृक्ष, फूल एवम फलो से सदैव ढका रहता था । उस पर्वत के मध्य में एक उद्यान था । उस उद्यान में एक सरोवर था, जिस पर सुनहरे कमल खिले रहते थे।"

प्राकृतिक सोंदर्य
प्राकृतिक सोंदर्य 

गजराज का सरोवर में जाना 

वह सरोवर बहुत सारे ग्राहो से भरा रहता था । उस उद्यान के समीप एक गजराज अपने कुटुंब के साथ रहता था । वह गजराज, हाथियों का सरदार था और झुंड में सबसे आगे चला करता था । एक बार वह प्यास से अत्यंत व्याकुल था और किसी जलाशय की तलाश में था ।

वायु में कमल के फूलों की गंध को सूँघ कर यह सरोवर के निकट पहुंचा । उसने उस सरोवर से जी भर कर जल पिया ।जल पीने के उपरांत वह सरोवर में क्रीड़ा करने लगा और अपनी सूंड मे जल भरकर छोड़ने लगा । 

जल में क्रीड़ा करते हुए गजराज
जल में क्रीड़ा करते हुए गजराज

परंतु विपत्ति उसके सर पर थी, सरोवर में रहने वाले एक विशाल ग्राह ने उसका पैर पकड़ लिया और उसे जल के भीतर खींचने लगा । उस गजराज ने स्वयं को उस ग्राह से छुड़ाने का प्रयास किया परंतु वह विशाल ग्राह अत्यंत शक्तिशाली था । अनेक प्रयत्न के उपरांत भी वह गजराज स्वयं को उस ग्राह से छुड़ा नहीं सका ।

गजराज द्वारा श्री हरि विष्णु की स्तुति 

धीरे-धीरे वह विशाल ग्राह, गजराज को जल के भीतर ले जाने लगा । वह गजराज स्वयं की रक्षा करने में असमर्थ हो गया था  उस समय उसे अपने पूर्व जन्म की स्मृति हुई । उस गजराज ने अत्यंत आर्त स्वर में श्री हरि विष्णु की स्तुति की । गजराज ने मृत्यु के भय को अपने मन से निकाल दिया और वह एकाग्रचित्त होकर नारायण की स्तुति करने लगा ।

गजराज को जल के अंदर ले जाता हुआ ग्राह
गजराज को जल के अंदर ले जाता हुआ ग्राह 

वह गजराज बोला हे प्रभु, "आप ही इस जगत के मूल कारण हैं और इस जगत के सभी जीवो के हृदय में निवास करते हैं अतः आप को मैं नमस्कार करता हूं ।

प्रभु, आप के वास्तविक स्वरूप को कोई नहीं जान सकता है । आप अनेक रूपों में अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए आते हैं । आप की लीलाओं को कौन जान सकता है? मैं आपकी शरण में हूं, कृपा करके मेरी रक्षा कीजिए ।

हे प्रभु, आप निराकार होकर भी साकार रूप में भक्तों के हृदय में निवास करते हैं । मैं आपको प्रणाम करता हूं । हे प्रभु, आप निराकार, सर्वव्यापी, सर्वसाक्षी, अजन्मा और अनादि हैं । आपकी इच्छा के बिना संसार का पत्ता भी नहीं हिल सकता ।

यह जो विशाल ग्राह मुझे जल के भीतर खींच रहा है वह आप की इच्छा से मेरा अहंकार तोड़ने के लिए ही प्रकट हुआ है । हे प्रभु, मैं आपकी शरण में हूं । हे भक्तवत्सल, मेरी रक्षा कीजिए और मेरे अपराधों को क्षमा कीजिए ।

हे प्रभु, आप अपनी शरण में आए हुए शरणागत की रक्षा अवश्य करते हो फिर आप विलंब क्यों कर रहे हो? इस ग्राह रूपी मृत्यु के पाश से मुझे बचाइए । मेरे अपराधों को क्षमा कीजिए और मेरी रक्षा कीजिए ।

हे प्रभु, जो व्यक्ति इंद्रियों के अधीन होकर सदैव भोग विलास में ही डूबे रहते हैं उनको आप की प्राप्ति अत्यंत कठिन है ।  संभवतः मेरा भी यही अपराध है कि मैं हाथियों के समूह का गजराज होने के मद में लीन होकर सदैव आपकी उपेक्षा करता रहा इसलिए आज मैं इस दशा में हूं । 

विपत्ति में गजराज

हे प्रभु, मृत्यु की इस घड़ी में आपको स्मरण करने की इच्छा भी आपने ही मुझ में उत्पन्न की है । प्रभु, आपके स्वरूप को बड़े-बड़े ऋषि- मुनि और योगीजन भी नहीं जान सकते । मैं तो एक पशु हूं और मैं अपनी तुच्छ बुद्धि के कारण आप के स्वरूप को नहीं जानता हूं । मुझे आपके साकार रूप का भी ज्ञान भी नहीं है ।

आपका जो भी स्वरूप है आप मुझे उस रूप में दर्शन दीजिए और मेरी रक्षा कीजिए । मुझे केवल इतना पता है कि आप सर्वशक्तिमान हो और मैं आपकी शरण में हूं । अतः आप मेरी रक्षा कीजिए ।"

श्री नारायण का गजराज की रक्षा के लिए प्रकट होना 

गजराज की आर्त स्वर में की गई पुकार को सुनकर श्री हरि विष्णु, पक्षीराज गरुड़ पर सवार होकर वहां प्रकट हो गए । मृत्यु के पाश में फंसे हुए गजराज ने अपनी सूंड से कमल का एक पुष्प उठाकर श्री हरि विष्णु को अर्पित किया । करुणामय श्री नारायण ने तत्काल ही सुदर्शन चक्र से उस विशाल ग्राह का वध किया और उस गजराज को मुक्त कराया ।

श्री नारायण का गजराज की रक्षा के लिए प्रकट होना
श्री नारायण का गजराज की रक्षा के लिए प्रकट होना 

शुकदेव जी द्वारा ग्राह और गजराज के पूर्व जन्म का वर्णन 

इतनी कथा सुनाकर शुकदेव जी बोले हे परीक्षित, "अब मैं तुम्हें उस गजराज और ग्राह की पूर्व जन्म की कथा सुनाता हूं ।"

वह ग्राह पूर्व जन्म में हुहू नाम का गंधर्व था । अगस्त्य ऋषि के श्राप के कारण ही वह ग्राह योनि को प्राप्त हुआ था । उसे उस श्राप से मुक्त करने के लिए ही श्री हरि ने यह लीला रची थी ।जब श्री हरि ने उसका वध किया तो उसी क्षण वह दिव्य रूप  धारण कर स्वर्ग को चला गया ।

वह गजराज अपने पूर्व जन्म में इंद्रद्युम्न नाम का एक राजा था। वह अपनी प्रजा का बहुत सम्मान करता था । वह महान विष्णु भक्त था । भगवान की भक्ति करने के लिए उसने अपना राजपाट त्याग दिया और वन में जाकर तपस्या करने लगा । जब ऋषि अगस्त्य ने उसे पुनः राज्य कार्य संभालने की आज्ञा दी तो उसने मना कर दिया ।  

ऋषि अगस्त्य ने उसे श्राप दिया और कहां कि तुम प्रजा पालन और राज्य कार्य त्याग कर मदमस्त हाथी की तरह जंगल में विचरण कर रहे हो इसलिए तुम्हें हाथी की योनि प्राप्त होगी ।

अगस्त्य ऋषि के श्राप के कारण ही वह राजा, हाथी की योनि को प्राप्त हुआ था । हे परीक्षित, पूर्व जन्म मे प्रभु की आराधना करने के कारण ही उस गजराज ने अंत समय मे श्री हरि की स्तुति  की ।  

श्री हरि, गजराज और ग्राह का उद्धार करते हुए
श्री हरि, गजराज और ग्राह का उद्धार करते हुए 

भगवान विष्णु ने गजराज को ग्राह से मुक्त करने के उपरांत उसे अपना पार्षद बना लिया । इसके उपरांत श्री हरि विष्णु उसके सूक्ष्म शरीर को लेकर विष्णु लोक चले गए ।

श्री शुकदेव बोले परीक्षित, "श्री हरि और गजेंद्र मोक्ष की यह कथा अत्यंत ही दिव्य है और सब पापों का नाश करने वाली है । श्री हरि ने स्वयं ही कहां है कि जो मनुष्य प्रभात के समय उनकी इस कथा का श्रवण करते हैं वह समस्त पापों से छूट कर अंत में मोक्ष को प्राप्त होते हैं ।" 

गजेंद्र मोक्ष
गजेंद्र मोक्ष 

 ।। इति श्री।।
                       

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