नर्क चतुर्दशी और नरकासुर



श्री हरि विष्णु ने पृथ्वी पर सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए अनेक अवतार लिए हैं । अपने श्री कृष्ण अवतार में श्री हरि ने देवताओं से भी अवध्य भूमि पुत्र नरकासुर का संहार किया था और समस्त संसार की रक्षा की थी ।

नरकासुर का परिचय

जब दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को उसकी धुरी से हटा कर जल में डुबो दिया था तब श्री विष्णु ने वराह अवतार धारण किया था और पृथ्वी को उसकी धुरी पर पुनः स्थापित किया था । पृथ्वी को उठाने और स्थापित करने के संयोग से भगवान वराह और पृथ्वी का एक पुत्र उत्पन्न हुआ था । भूमि का पुत्र होने से उसका नाम भौमासुर था ।

Lord Varah
भगवान वराह 

भौमासुर भूमि के अंदर ही रहता था, वहां वह असुरों के संपर्क में था इसीलिए वह देवताओं और मनुष्यों को अपना शत्रु मानता था । वहां भौमासुर  पूरी तरह आसुरी प्रवृत्ति का बन गया था । मनुष्य और देवताओं के विरुद्ध निंदनीय कार्य करने के कारण उसका नाम नरकासुर पड़ गया था ।

नरकासुर ने अमरता प्राप्त के लिए परम पिता ब्रह्मा जी की तपस्या की, परंतु ब्रह्मा जी ने अमरत्व का वरदान देने से मना  कर दिया । फिर उसने यह वर मांगा कि उसकी मां ही उसकी मृत्यु में सहायक बने । ब्रह्मा जी से वर पाकर नरकासुर अति उदंड हो गया था ।  

नरकासुर की उद्दण्डता 

नरकासुर का साहस इतना बढ़ गया था कि उसने स्वर्ग जाकर देव माता अदिति के कुडल हर लिए थे और वरुण देव का छत्र भी छीन लिया था ।  उसने देवताओं के प्रसिद्ध मणि पर्वत पर अपना अधिकार कर लिया था । स्वर्ग और पृथ्वी की बहुत सी धन संपदा उसने लूट कर अपने महल में एकत्र कर ली थी ।

वह कभी भी स्वर्ग पर आक्रमण कर देता था और चंद्रमुखी कन्याओं का हरण करके अपने महल ले आता था । युद्ध मैं कोई भी उसके समक्ष टिक नहीं पाता था । उसने पृथ्वी लोक पर भी भयंकर उत्पात मचाया था । कितनी ही ऋषि कन्याओं और कितनी ही गोप कन्याओं उसने अपहरण कर लिया था । इस प्रकार उसने 16, 100 कन्याओं का अपहरण कर उन्हें अपने महल में बंदी बना लिया था। 
16,100 कन्याएं
16,100 कन्याएं 

नरकासुर ने उन कन्याओं के रहने के लिए मणि पर्वत पर एक पुर का निर्माण कराया जिसका नाम अलकापुर था । उस पुर की रक्षा मुरु नामक महान दैत्य करता था जिसके 10 पुत्र थे । अलकापुर और अपनी राजधानी प्रगज्योतिषपुर की रक्षा के लिए नरकासुर ने तीन अन्य असुर हएग्रीव, निसुन्द, पंचनद को द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया था । वह सब के सब महान पराक्रमी दैत्य थे । वह सब स्वर्ग की ओर जाने वाली पुण्य आत्माओं को बहुत डराया करते थे ।

इंद्र का श्री कृष्ण की शरण में जाना 

नरकासुर के अत्याचारों से देवराज इंद्र और सभी स्वर्गवासी बहुत आहत हो गए थे ।  देवराज इंद्र अपने प्रधान देवताओं को लेकर भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए । श्री कृष्ण उस समय अपनी दशाही राज्यसभा में बैठे हुए थे । 

श्री कृष्णा और देवराज इंद्र
श्री कृष्णा और देवराज इंद्र 

वह देवराज इंद्र से बहुत प्रेम पूर्वक मिले । देवराज इंद्र ने श्री कृष्ण को नरकासुर के अत्याचारों का सारा वृत्तांत सुनाया । तब श्री कृष्ण ने उन्हें बहुत संतावना दी और कहा वह शीघ्र ही नरकासुर का वध करेंगे ।

श्री कृष्ण का प्रागज्योतिश्पुर की और प्रस्थान 

श्री कृष्ण ने गरुड़ का स्मरण किया और उनके स्मरण करते ही विनता नंदन गरुड़ वहां आ गए । फिर श्री कृष्ण ने अपनी रानी सत्यभामा के साथ नरकासुर का वध करने के लिए प्रगज्योतिषपुर का प्रस्थान किया । भूमि देवी ने ही सत्यभामा के रूप में अवतार लिया था अतः सत्यभामा ही अपने पिछले जन्म में नरकासुर की माता थी ।

देवी सत्यभामा और श्री कृष्ण
देवी सत्यभामा और श्री कृष्ण 

श्री कृष्ण द्वारा दैत्य मुरु का वध 

जब श्री कृष्ण, प्रागज्योतिश्पुर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक बहुत बड़ी सेना उस पुर की रक्षा में तत्पर है। तब श्रीकृष्ण ने अपने शारगम धनुष की प्रत्यंचा खींचकर छोड़ी तो उसकी टर्कार सुनकर सभी दैत्य कांप गए । तब मुरु अपनी क्रोध से आंखें लाल करके श्री कृष्ण को मारने के लिए दौड़ा । उसने श्री कृष्ण पर भयानक अस्त्रों से प्रहार किया परंतु भगवान श्री कृष्ण ने वह सभी अस्त्र रास्ते में ही काट दिए । भगवान श्री कृष्ण ने शीघ्र ही मुरू और उसके सहायक दैत्यों का वध कर दिया ।

मुरु का वध करते हुए श्री कृष्ण
मुरु का वध करते हुए श्री कृष्ण 

श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर के द्वारपालो का संहार 

मुरु की मृत्यु के पश्चात निसुंद, श्रीकृष्ण से युद्ध करने के लिए आया । भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पारजन्य अस्त्र से उसकी सेना को बहुत क्षति पहुंचाई । फिर श्री कृष्ण ने सावित्री नामक अस्त्र धारण किया और निसुन्द का भी वध कर दिया ।

असुरों का वध करते हुए श्री कृष्ण
असुरों का वध करते हुए श्री कृष्ण 

निसुन्द वध के पश्चात पराक्रमी हयग्रीव युद्ध करने के लिए आया । उसने एक विशाल चट्टान श्री कृष्ण के ऊपर दे मारी श्री कृष्ण ने पारजन्य अस्त्र से उस चट्टान के सात टुकड़े कर दिए ।अति भयंकर युद्ध के पश्चात श्री कृष्ण ने  हयग्रीव  का भी संहार कर दिया । 

हयग्रीव और पंचनद का संहार करने के पश्चात श्री कृष्ण  प्रागज्योतिषपुर में प्रविष्ट हुए और उन्होंने अपना "पांचजन्य" शंख बजाया जिसका नाद सुनकर सारे असुर घबरा गए  । 

नरकासुर वध 

असुर नरकासुर अपने लोहे के रथ में बैठकर  श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए आया । उसके रथ में 1000 घोड़े जुते हुए थे । उसने अपनी समूची सेना के साथ श्री कृष्ण पर आक्रमण किया परंतु भगवान श्री कृष्ण ने शीघ्र ही उसकी समस्त सेना का वध कर दिया ।

नरकासुर ने भगवान श्री कृष्ण पर कई दिव्य अस्त्रों से प्रहार किया परंतु उन सभी अस्त्रों को श्री कृष्ण ने पार्जनय अस्त्र से काट दिया । नरकासुर और श्री कृष्ण में भीषण युद्ध हुआ । 

जब भगवान श्री कृष्ण भी नरकासुर का वध करने में असमर्थ  प्रतीत हो रहे थे तब देवी सत्यभामा ने उस युद्ध में श्रीकृष्ण की सहायता की । देवी सत्यभामा ने श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र चलाने का आग्रह किया ।

देवी सत्यभामा, श्री कृष्ण से नरकासुर के वध का आग्रह करते हुए
देवी सत्यभामा, श्री कृष्ण से नरकासुर के वध का आग्रह करते हुए 

देवी सत्यभामा की बात सुनकर श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को नरकासुर का वध करने की आज्ञा दी । सुदर्शन चक्र के प्रभाव से नरकासुर का शरीर दो हिस्सों में बट गया और वह भूमि पर गिर गया । 

चक्रधारी श्री कृष्ण
श्री कृष्ण 

नरकासुर के वध के उपरांत सभी देवता बहुत प्रसन्न  हुए । देवताओं ने आसमान से पुष्प वर्षा की । उसी समय देवी पृथ्वी अपने हाथों में देवमाता अदिति के कुंडल और वरुण देव का छत्र लेकर प्रकट हुई  । देवी पृथ्वी ने भगवान श्री कृष्ण की  अनेक प्रकार से स्तुति की ।

नरकासुर वध
श्री कृष्ण नरकासुर का वध करते हुए 

श्री कृष्ण का 16100 कन्याओं से विवाह करना 

तदुपरांत श्री कृष्ण अल्कापुर गए जहा पर नरकासुर ने 16100 कन्याओं को रखा था । श्री कृष्ण ने सभी कन्याओं को मुक्त किया । श्री कृष्ण के दिव्य दर्शन कर सभी कन्याएं बहुत प्रसन्न हुई  । श्री कृष्ण ने सभी कन्याओं को उनके घर जाने को कहां परंतु वे सब बोली, उनको अब समाज मैं कोई स्वीकार नहीं करेगा । तब रोहिणी नाम की एक कन्या बोली, नारद जी ने कहा था जब श्री कृष्ण, नरकासुर का वध करेगे तब वे सभी कन्याओं को मुक्त कर उनसे विवाह करेगे ।

श्री कृष्ण और 16, 100 कन्याएँ
श्री कृष्ण और 16, 100 कन्याएँ 

सभी 16100 कन्याओं की विनती सुनकर श्री कृष्ण उन सभी को द्वारका ले गए और उन्होंने उन सब से विवाह किया । इस प्रकार श्री कृष्ण की 16, 108 पत्निया हुई ।

श्री कृष्ण तथा उनकी रानियाँ
श्री कृष्ण 16, 100 कन्याओं से विवाह करते हुए 

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को श्री कृष्ण ने नरकासुर वध किया था और 16, 100 कन्याओं को मुक्त किया था इसलिए यह दिवस समस्त संसार में नर्क चतुर्दशी  के रूप मैं मनाया जाता है । श्री कृष्ण द्वारा 16, 100 कन्याओं से विवाह करने के कारण यह दिवस रूप चौदस के नाम से भी मनाया जाता है । यह दिवस प्रसिद्ध त्योहार दीपावली से एक दिवस पहले आता है ।
                              !! इति श्रीं!! 
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