भगवान श्री कृष्ण द्वारा दो पिशाचों को मुक्त करना

     
श्री हरि विष्णु ने अपने कृष्ण अवतार में अनेक भक्तों का उद्धार किया था। एक ऐसा ही प्रसंग श्री हरिवंश पुराण में आता है, जब भगवान श्री कृष्ण ने बद्रिकाश्रम के जंगलों में घूम रहे दो पिशाचौ का उद्धार किया था और उन्हें उत्तम गति दी थी।

 श्री हरिवंशपुराण में श्रीमान परीक्षित के पुत्र राजा  जन्मेजय प्रश्नन कर रहे हैं और ऋषिवर वैशंमपायन जी उसका उत्तर दे रहे हैं। राजा जन्मेजय ने पूछा कि किस प्रकार भगवान श्री कृष्ण नेे दो पिशाचौ का उद्धार किया था।     

ऋषिवर वैशंमपायन जी के द्वारा दो पिशाचों की कथा 

एक बार भगवान श्री कृष्ण ने महादेव की तपस्या करने के लिए कैलाश पर्वत को प्रस्थान किया। रास्ते में उन्होंने गंगा जी में स्नान किया और इसके पश्चात चलते हुए वे उस स्थान पर पहुंचे जहां पर उन्होंने पूर्व काल में तपस्या की थी।

वहां का वातावरण बड़ा मनोहर था । वहां पर ठंडी ठंडी हवा चल रही थी और भाँति - भाँति प्रकार के पुष्पों से सारा वन महक रहा था । श्री कृष्ण एक वृक्ष के नीचे बैठ गए और उन्होंने अपने मन को एकाग्र करके समाधि लगा ली   ।

 तभी वहां पर बड़ा भारी कोलाहल हुआ वहां मृगो का झुंड भाग रहा था जिनके पीछे से आवाज आ रही थी । पकड़ो, और इन्हें खा जाओ । यह सब भगवान विष्णु का प्रसाद है । मृगो को पकड़ने और भगवान विष्णु की स्तुति करने की मिश्रित आवाजे सारे वन में गूंज रही थी।

वह भयानक कोलाहल सुनकर भगवान कृष्ण की समाधि टूट गई। उन्होंने देखा मृर्गों का एक झुंड उनकी तरफ आ रहा है और उस झुंड के पीछे जंगली कुत्ते दौड़ रहे हैं। जंगली कुत्तों के पीछे पिशाचौ का एक झुंड है जो अनेक प्रकार से भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए कच्चा मांस खा रहा है और रक्त पीं रहा है ।

 वह मृर्गों का झुंड भगवान कृष्ण के पास आकर रुक गया और जंगली कुत्ते भी वहां आकर ठहर गए । तभी रात के अंधेरे में एकाएक कई मशाले जल उठी और कई पिशाच भगवान कृष्ण को घेर कर खड़े हो गए। वह पिशाच देखने में बहुत भयानक थे । उन सब के गले में नरमुंडो की माला लटक रही थी । वह जानवरों का कच्चा मांस खा रहे थे और बहुत भयानक शोर उत्पन्न कर रहे थे। उनमें से कुछ पिशाचों ने मानव अंतड़ियों से अपने शरीर को बांध रखा था । उनको अपने पास आया देखकर भगवान कृष्ण सोचने लगे कि यह लोग कौन है और मेरे पास क्यों आए हैं।

श्री कृष्ण के समक्ष दो पिशाचों का आगमन 

श्री कृष्ण अभी यह विचार कर ही रहे थे कि तभी आपस में बातें करते हुए दो पिशाच उनके सामने आ गए । वह बहुत भयंकर दिखाई देते थे उनके दांत बहुत बड़े - बड़े थे । वह जानवरों का कच्चा मांस खाते हुए और रक्त पीते हुए आपस में बातें कर रहे थे कि हम इस पिशाच योनि से कब मुक्त होंगे । कब श्री हरि विष्णु हमारा उद्धार करेंगे। हमने पिछले जन्म में ऐसा कौन सा कार्य किया था जिससे हमें यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है । ऐसी अनेक प्रकार से भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए वह भयानक पिशाच श्री कृष्ण के पास आकर खड़े हो गए।

 वह दोनों भयानक पिशाच भगवान कृष्ण को देखकर मोहित हो गए और बोले कि हे विप्रवर आप कौन हो और इस भयानक वन में क्या कर रहे हो । आप देखने में तो साक्षात दूसरे विष्णु की तरह लग रहे हो । हम जिसे भी देखते है उसको खाने के लिए दोड़ते है परंतु आप को देख कर हमारे मन मैं श्रद्धां उत्पन्न हो रहीं है ।कृपा करके अपना परिचय दीजिए।

भगवान श्री कृष्ण ने अपना परिचय दिया और कहां कि मैं यदुवंशी हूं और द्वारिका में रहता हूं । मैं महादेव की तपस्या करने कैलाश जा रहा हूं और कुछ समय के लिए इस वन में ठहर गया हूं। परंतु पहले तो कभी भी इस वन में इतना कोलाहल नहीं होता था और ना ही यहां पर पिशाचौ का वास था । यह विशाल बद्री क्षेत्र देवभूमि है और यहां पर ऋषि गण भगवान की तपस्या में लीन रहते हैं । आप लोग यहां पर किस प्रकार आ गए हो कृपया करके अपना परिचय दीजिए।
 
तब एक पिशाच जिसका नाम घंटाकर्ण था श्री कृष्ण के पास आया और बोला कि पहले मैं श्री हरि विष्णु को नमस्कार करता हूं और फिर अपना परिचय देता हूं । उसने बताया कि मैं और मेरा छोटा भाई जब मनुष्य योनि में थे तब वह भगवान विष्णु से बहुत घृणा करते थे और उनका नाम भी नहीं सुनना चाहते थे । भगवान विष्णु का नाम उनके कानों में ना पड़े इसलिए उसने अपने कानों में घंटियां बांध ली थी इसी कारण उसका नाम घंटाकर्ण पड़ गया था ।  समय के साथ वह शरीर छूट गया।

भगवान विष्णु का घोर तिरस्कार करने के कारण उन्हें यह सब से निकृष्ट पिशाच योनि प्राप्त हुई । इस पिशाच योनि में जानवरों का कच्चा मांस खाना और उनका रक्त पीना ही हमारी नियति बन गई थी। तब हमने भगवान शिव की तपस्या की ओर उन्हें प्रसन्न करके उनसे अपनी मुक्ति का उपाय पूछा।

भगवान शिव बोले श्री हरि विष्णु का तिरस्कार करने के कारण ही तुम्हें यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है इसलिए तुम बद्रिकाश्रम के जंगलों में जाकर रहो और निरंतर भगवान विष्णु का ही स्मरण करते रहो । वही पर भगवान विष्णु तुम्हें इस पिशाच योनि से मुक्त करेंगे।

फिर वह पिशाच भगवान कृष्ण के समक्ष बैठ गया और भगवान विष्णु की अनेक प्रकार से स्तुति करने लगा । वह कहने लगा कि कब भगवान मुझे दर्शन देंगे और इस पिशाच योनि से मुक्त करेंगे। यह बात कहते हुए वह पिशाच ब्रह्मा विष्णु और शिव का उच्चारण करते हुए समाधि की अवस्था में चला गया।
 
उसका यह कार्य देखकर भगवान कृष्ण उस पर अति प्रसन्न हो गए और उसको समाधि की अवस्था में ही अपने दर्शन दिए । भगवान के दर्शन पाकर वह पिशाच बहुत प्रसन्न हुआ तब उसे ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण ही परब्रह्म श्री हरि विष्णु है। उस पिशाच ने श्री कृष्ण को बारंबार नमस्कार किया और भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की अनेक प्रकार से स्तुति की ।

 प्रसन्नतापूर्वक वह पिशाच श्री कृष्ण से बोला कि भगवान मैं आपको कुछ उपहार देना चाहता हूं । उसने एक मृत ब्राह्मण के शरीर का मांस एक कटोरे में रख कर भगवान को उपहार स्वरूप दिया ।    

श्री कृष्ण द्वारा दो पिशाचों को मुक्त करना 

तब भगवान श्रीकृष्ण बोले, मेरे लिए ब्राह्मण तो सर्वथा पूजनीय है इसलिए मैं उनका तिरस्कार नहीं कर सकता । यह कह कर श्री कृष्ण ने उस ब्राह्मण को जिवित कर दिया और उसे बद्रिकाश्रम मैं तपस्या करने भेज दिया ।  श्री कृष्ण बोले, मैं तुम दोनों से अति प्रसन्न हूं । यह कहकर भगवान श्री कृष्ण ने उन दोनों.पिशाचौ के सर पर हाथ रखा। प्रभु श्री कृष्ण के दिव्य  स्पर्श से उन दोनों पिशाचौ का शरीर दिव्य हो गया ।



भगवान श्री कृष्ण बोले तुम दोनों ने पिशाच योनि में होने के उपरांत भी हर समय मेरा ही स्मरण किया है इसलिए मैं तुम दोनों को स्वर्गलोक में रहने का अधिकार देता हूं। वैवस्वत मन्वंतर के अंत तक तुम दोनों स्वर्ग लोक में वास करोगे और इसके उपरांत सावर्णी मन्वंतर में इससे भी उच्च गति प्राप्त करोगे। श्री कृष्ण को प्रणाम कर के वे दोनों दिव्य पुरुष स्वर्ग लोक को चले गए । फिर श्री कृष्ण वहा से महादेव का तप करने कैलाश चले गए ।

ऋषिवर वैशंमपायन जी कहते है कि इस कथा का पाठ करने से व्यक्ति का मन शुद्ध हो जाता है और उसे उत्तम गति प्राप्त होती है ।

        
        

      
           

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