श्रीकृष्ण महादेव संग्राम और बाणासुर - भाग 2

 
Lord Krishna and Mahadev war in hindi

अग्नि और उसके अनुयायियों का आक्रमण 

Lord of Fire
अग्नि 
भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और प्रद्युम्न अभी शोणितपुर पहुंचे भी नहीं थे कि अग्नि और उसके अनुयायियों ने उन पर आक्रमण कर दिया । इस आक्रमण का नेतृत्व "अंगिरा" नाम की क्रूर अग्नि ने किया था । भयानक युद्ध के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण और पराक्रमी बलराम ने अंगिरा और उनके अनुयायियों को पराजित कर दिया । तभी दानव बाणासुर के सैनिक और भगवान शिव के गणों ने यादव सैनिकों से युद्ध प्रारम्भ कर दिया ।

भयंकर दानव त्रिशीरा

भगवान श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न और पराक्रमी बलराम ने मिलकर सभी का वध कर दिया । तभी एक महान दानव त्रिशीरा, जिसकी उत्पत्ति स्वयं महादेव से हुई थी, युद्ध के मैदान में आ गया । उसने कृष्ण और बलराम से भयंकर युद्ध कर दोनों को घायल कर दिया। तब कृष्ण ने उसके समान एक प्राणी की रचना की और उस दिव्य प्राणी ने दानव त्रिशीरा को पराजित कर दिया ।

दानव त्रिशीरा
दानव त्रिशीरा


श्री कृष्ण और भगवान शिव का युद्ध

श्री कृष्ण, प्रद्युम्न और बलराम ने शक्तिशाली गरुड़ के साथ शोणितपुर में प्रवेश किया। श्री कृष्ण ने अपना शंख पंचजन्य बजायाा । इसकी आवाज से राक्षस कांपने लगे और भगवान कार्तिकेय द्वारा दिया गया दिव्य ध्वज धरती पर गिर गया ।

भगवान विष्णु
भगवान विष्णु 

इसके उपरांत, दानव बाणासुर ने भगवान श्रीकृष्ण से लड़ने के लिए कई राक्षस भेजे, परन्तु भगवान श्रीकृष्ण के तीखे बाणों और बलराम के हल से सभी राक्षस अत्यंत घायल हो गए और वे सब भागने लगे।

भगवान शिव अपने अनेक गणों और नंदी के साथ युद्ध के मैदान में आए । महादेव ने यादव वीरों को अपने 100 बाणों से घायल कर दिया । इसके उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण और पराक्रमी बलराम ने अपने तीखे बाणों से शिव के गणों को घायल कर दिया । 

महादेव
महादेव 

ज्योंही, भगवान शिव ने यादव नायकों पर भयानक अग्नि अस्त्र का प्रहार किया, अग्नि पुंज उन पर गिरने लगे । श्रीकृष्ण ने उन पर "वरुणात्र" छोड़कर अग्नि अस्त्र के प्रभाव को समाप्त कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शिव के बीच भयंकर युद्ध देखकर दिशाएं डोलने लगीं और पृथ्वी कांपने लगी । 

भगवान ब्रह्मा, इंद्र और सभी देवता श्रीकृष्ण और शिव के बीच भीषण युद्ध देखने के लिए आकाश मैं प्रकट हो गए । वही दूसरी ओर, दानव बाणासुर भी अपनी समस्त सेना के साथ युद्ध के मैदान मैं आ गया ।

बाणासुर
बाणासुर
   
कृष्ण अपने शारघम धनुष से भगवान शिव पर आक्रमण कर रहे थे और भगवान शिव अपने पिनाक धनुष से उन्हें उत्तर दे रहे थे । वे दोनों अपने दिव्य आयुध से परस्पर एक-दूसरे पर आक्रमण कर रहे थे । वे दोनों एक- दूसरे पर घातक अग्नि पुंज की वर्षा रहे थे । 

अचानक भगवान शिव ने बहुत ही भयानक अस्त्र यादव वीरो पर छोड़ दिया उस अस्त्र के प्रभाव से यादव योद्धा जलने लगे। इसके उत्तर मैं श्रीकृष्ण ने भगवान शिव पर प्रभावी "वैष्णव" अस्त्र का प्रयोग किया । "वैष्णवास्त्र" के प्रयोग से सम्पूर्ण युद्धभूमि पर अंधेरा छा गया । उस घातक अस्त्र के प्रभाव से शिव और उनके अनुयायी जलने लगे । 

महादेव का जम्बनास्त्र
महादेव 

यह देखकर भगवान शिव ने श्रीकृष्ण पर चार फल वाले एक अस्त्र का संधान किया ही था परन्तु श्रीकृष्ण ने महादेव पर "जम्बनास्त्र" का प्रयोग किया । इसके प्रभाव से महादेव जम्हाई लेने लगे और उसी समय वह युद्ध के मैदान में बैठ गए । थोड़ी देर तक बैठने के बाद उनके मुंह से भयंकर अग्नि पुंज निकला और उस भयानक अग्नि पुंज के प्रभाव से समस्त युद्ध का मैदान और पृथ्वी जलने लगी ।

ब्रह्मदेव का युद्ध समाप्त करने का आग्रह करना 

तुरंत उसी समय देवी पृथ्वी भगवान ब्रह्मा के समक्ष प्रकट हुई और उनसे उस भयानक अग्नि से अपनी रक्षा करने का अनुरोध किया । तुरंत भगवान ब्रह्मा, भगवान शिव के पास गए और बोले, कि आप अभिमानी राक्षस बाणासुर के लिए श्रीकृष्ण से क्यों युद्ध कर रहे हैं ? वस्तुतः आप दोनों में कोई भेद नहीं है। 

ब्रह्मदेव
ब्रह्मदेव 
ब्रह्मदेव से ऐसे वाक्य सुनने के उपरांत भगवान शिव गहरे ध्यान में डूब गए और उन्हें मन में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हो गए। जब भगवान शिव ने अपनी आंखें खोली तो उन्होंने स्वयं को  श्रीकृष्ण के रूप में देखा । 

भगवान शिव अपने मन में श्रीकृष्ण की छवि देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। इसके उपरांत वह कृष्ण की भक्ति में लीन हो गए । भगवान शिव को अपने और कृष्ण में कोई भेद नहीं मिला । वह कृष्ण को देखकर मुस्कुराए और कृष्ण भी उन्हें देख कर मुस्कुराने लगे । तब महादेव भगवान ब्रह्मा से बोले , "अब मैं युद्ध नहीं करूंगा "।

ब्रह्मदेव द्वारा महादेव एवम श्रीकृष्ण की स्तुति 

श्री हरिहर
श्री हरिहर 
भगवान ब्रह्मा ने एक साथ भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शिव की पूजा की । इस प्रार्थना को अद्भुत "हरिहर स्तोत्र " के नाम से जाना जाता है । इस स्तोत्र के अनुसार भगवान शिव और भगवान विष्णु एक समान शक्ति के दो अलग-अलग रूप हैं । ये दोनों ही संसार के संचालक और संहारक हैं ।

श्रीकृष्ण और कार्तिकेय युद्ध

इसके उपरांत भगवान कार्तिकेय ने सेनापति कुंभभांड द्वारा दिए गए रथ पर विराजमान होकर युद्ध के मैदान में प्रवेश किया ।  उन्होंने श्रीकृष्ण से भयंकर युद्ध आरंभ कर दिया । उन्होंने "ब्रह्माशिरा" नामक एक गहन अस्त्र लिया और उसे श्रीकृष्ण का वध करने की इच्छा से उन पर चला दिया । 

भगवान कार्तिकेय
भगवान कार्तिकेय  
श्रीकृष्ण ने सुदर्शनचक्र से उस अस्त्र की शक्ति समाप्त कर दी । कार्तिकेय ने श्रीकृष्ण पर अपनी एक अमोघ शक्ति का प्रयोग किया, परंतु भगवान ने उस शक्ति को केवल अपनी हुंकार से नष्ट कर दिया । 

भगवान श्रीकृष्ण और कार्तिकेय के बीच भीषण युद्ध देखकर देवी कोटकी, जो देवी पार्वती की शक्ति का आठवां अंश है, युद्ध के मैदान में प्रकट हुईं और दोनों को युद्ध रोकने के लिए आग्रह किया । तब श्रीकृष्ण और कार्तिकेय ने उनके अनुरोध पर युद्ध को समाप्त कर दिया । 

श्रीकृष्ण और बाणासुर का युद्ध

इसके उपरांत, बाणासुर अपने मयूर रथ पर रणक्षेत्र में आया । आकाश से ऋषि नारद और अन्य देवता उस युद्ध को देख रहे थे । भगवान श्रीकृष्ण को देखकर बाणासुर ने कहा, "मैं तुम्हें और तुम्हारे समूह को यहां परास्त करूंगा और आज समस्त संसार मेरा पराक्रम देखेगा ।" 

अपने मयूर पर बाणासुर
बाणासुर अपने रथ पर 

बाणासुर ने श्रीकृष्ण पर अनेक अस्त्रों से प्रहार किया किन्तुु  श्रीकृष्ण ने उन सब को रास्ते में ही नष्ट में ही कर दिया । इससे क्रोधित होकर बाणासुर ने कृष्ण पर एक बहुत भयंकर शक्ति का संधान किया जो उन्हें ब्रह्मदेव से प्राप्त हुई थी । यह देख सभी दैत्य बाणासुर की प्रशंसा करने लगे लेकिन कृष्ण ने "पारजन्य" नामक दिव्य अस्त्र से उसकी शक्ति काट दी । तब बाणासुर ने "ब्रह्मशिरा" नामक एक भयंकर अस्त्र छोड़ा , जिसे प्रभु ने अपने सुदर्शनचक्र से काट दिया ।

श्रीकृष्ण ने अपने तीखे बाणों से बाणासुर को घायल कर दिया । कृष्ण ने उसक रथ की ध्वज काट दी और उनके सिर से मुकुट गिरा दिया ।  बाणासुर, श्रीकृष्ण के प्रहारों से भूमि पर गिर गया । जैसे ही बाणासुर भूमि पर गिरा वह बहुत घबरा गया और सोचने लगा,  मैंने कुंभभांड की बात नहीं सुनी और अब मैं अपने हजारों हाथो के साथ भी अपने शत्रु के सामने टिक नहीं  पा रहा हूंं । 

बाणासुर को पृथ्वी पर गिरा हुआ देख महादेव ने नंदी के साथ अपना दिव्य रथ भेजा । बाणासुर रथ के साथ नंदी को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ । वह रथ पर चढ़कर भगवान श्रीकृष्ण को फिर से चुनौती देने लगा । भगवान श्रीकृष्ण क्रोध से भर गए और उन्होंने अपने तीखे बाणों से उसे घायल कर दिया ।


युद्ध के मैदान में देवी पार्वती का प्रकट होना       

भगवान श्रीकृष्ण बोले, बाणासुर 'जिस बल पर आपको इतना गर्व था, वह बल अब मुझे दिखाओ । तब श्रीकृष्ण ने उसका वध करने की इच्छा से सुदर्शनचक्र  का संधान किया ।  परंतु उसी समय माता पार्वती वहां प्रकट हुईं और भगवान श्रीकृष्ण से बाणासुर को न मारने की प्रार्थना करने लगी । देवी बोली, प्रभु, आप समस्त संसार का आधार हैं और सारी सृष्टि आपसे उत्पन्न होती है और आप में विलीन हो जाती है । हमने बाणासुर को अपना पुत्र माना है इसलिए कृपया उसका वध मत कीजिए।

देवी दुर्गा
देवी पार्वती 
भगवान श्रीकृष्ण ने देवी से कंहा, "बाणासुर को अपनी हजारों भुजाओं पर बहुत गर्व है, इसलिए वह उसकी दो भुजाओं को छोड़कर बाकी सभी भुजाओं को काट देगे ।" फिर श्री कृष्ण  सुदर्शनचक्र की सहायता उसकी भुजाओं को काट दिया । अपनी भुजाओं के कटने के उपरांत भी बाणासुर क्रोध से दहाड़ने लगा । 

भगवान शिव का अनुरोध

भगवान श्रीकृष्ण ने बाणासुर का वध करने के लिए सुदर्शन चक्र छोड़ा, लेकिन उसी समय भगवान शिव वहां पहुंच गए और भगवान श्रीकृष्ण से उसे न मारने की प्रार्थना करने लगे । उन्होंने कंहा , हमने बाणासुर को अपना दत्तक पुत्र माना है, कृपया उसे मत मारो । भगवान शिव से ये वचन सुनकर कृष्ण ने बाणासुर को छोड़ दिया और युद्ध के मैदान से चले गए । 

भगवान शंकर द्बारा भगवान विष्णु की स्तुति
भगवान शंकर द्बारा भगवान विष्णु की स्तुति 

श्रीकृष्ण के जाने के उपरांत बाणासुर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए नृत्य किया । उस के नृत्य से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसकी सारी पीड़ा दूर कर दी और उसे अपना प्रमुख गण बनने का आशीर्वाद दियाा । इसके उपरांत शिव, बाणासुर को साथ लेकर कैलाश पर्वत पर चले गए । 

भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, प्रद्युम्न और गरुड़ के साथ उस स्थान पर पहुंचे, जहां अनिरुद्ध को कैद किया गया था । गरुड़ ने उन्हें "नागपाश" से मुक्त कराया । वे सभी एक-दूसरे से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए । 

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पौत्र अनिरुद्ध और उषा के विवाह का प्रस्ताव कुंभभांड के समक्ष रखा ।  उन्होंने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए उनके विवाह का आयोजन किया और उषा का कन्यादान किया । स्वयम माता पार्वती ने अनिरुद्ध और उषा को दिव्य रथ पर बैठाकर विदा किया । भगवान श्रीकृष्ण ने शोणितपुर का राज्य कुम्भभांड को दे दिया । इसके उपरांत भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, प्रद्युम्न और गरुड़ के साथ द्वारका लौट आए ।

                            ।। इति श्री ।।

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