श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान वेदव्यास जी द्वारा रचित एक पवित्र ग्रंथ है । इस ग्रंथ में श्रीहरि की अनेक दिव्य लीलाओं का वर्णन मिलता है । श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्त व्यक्ति ही इस महान ग्रंथ का पाठन और श्रवण कर सकते हैं । इस दिव्य ग्रंथ में राजा परीक्षित प्रश्न कर रहे हैं और भगवान वेदव्यास जी के पुत्र श्री शुकदेव उन्हें उत्तर दे रहे हैं ।
श्रीमद्भागवत महापुराण |
राजा परीक्षित ने श्री शुकदेव से ईश्वर, जगत और आत्मा के विषय में अनेक प्रश्न किए जिसका श्री शुकदेव ने अपनी दिव्य वाणी से उत्तर देकर उनकी मन की जिज्ञासा को शांत किया ।
परीक्षित का शुकदेव से मत्स्य अवतार की कथा सुनाने का आग्रह करना
ईश्वर की कृपा से परीक्षित के मन में प्रभु के मत्स्य अवतार की कथा सुनने की इच्छा जागृत हुई । उन्होंने श्री शुकदेव जी से प्रश्न किया, "प्रभु मैं आपके श्री मुख से श्रीहरि की अनेक दिव्य कथाओं का श्रवण कर चुका हूं और अब मैं आपसे श्रीहरि के दिव्य मत्स्य अवतार की कथा सुनने की इच्छा रखता हूं ।"
श्री शुकदेव के साथ राजा परीक्षित |
श्री शुकदेव बोले, "प्रभु के प्रथम मत्स्य अवतार की कथा अत्यंत दिव्य है जो वक्ता और श्रोता दोनों के मन को पवित्र कर देती है । अतः परीक्षित इस दिव्य कथा को एकाग्रचित्त होकर सुनो ।"
दानव हयग्रीव द्वारा वेदों को चुराना
प्राचीन समय की बात है। चाक्षुष मन्वंतर का अंत हो जाने पर परमपिता ब्रह्मदेव गहन निद्रा में लीन थे । संसार में सभी और जल ही जल व्याप्त था । ब्रह्मदेव के निद्रा में होने के कारण चारों वेद उनके मुख से निकल गए । इसी अवसर का लाभ उठाकर उनके पास रहने वाले एक दैत्य हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया और वह समुद्र में जाकर छिप गया ।
शुकदेव बोले, हैं परीक्षित, दानव हयग्रीव से वेदों को मुक्त कराने और उसका वध करने के लिए श्रीहरि विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था ।
श्रीहरि विष्णु का मत्स्य के रूप मैं सत्यव्रत को दर्शन देना
हे परीक्षित, उन दिनों द्रविड़ देश में सत्यव्रत नाम का एक प्रजा पालक और उदार राजा राज्य करता था । वह सूर्य देव का पुत्र था । वह भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था । उस समय, संसार के कल्याण के लिए राजा सत्यव्रत श्रीहरि विष्णु की तपस्या कर रहे थे ।
एक दिन राजा सत्यव्रत कृत्माला नदी में भगवान विष्णु को जल अर्पण कर रहे थे । उसी समय, एक छोटी सी मछली उनकी अंजली में आ गई । जब उस मछली को जल मैं छोड़ने के लिए सत्यव्रत ने अपने हाथ नीचे किए तो तो वह मछली मनुष्यों की भांति बोलने लगी ।
सत्यव्रत की अंजुली में छोटी मछली |
वह मछली बोली हे राजन, मैं आपकी शरण में हूं । कृपया करके मुझे जल में मत छोड़िए । जल के भीतर रहने वाले बड़े जंतु मुझे खा जाएंगे । अतः आप मेरी रक्षा कीजिए । मछली की बातें सुनकर राजा सत्यव्रत ने उसे अपने जल के पात्र में रख लिया और अपने महल में ले आए ।
महल में आने के उपरांत एक रात में ही वह मछली इतनी बड़ी हो गई की जल का वह पात्र उसके लिए पर्याप्त ना था । फिर सत्यव्रत ने उसे एक बड़े जल के पात्र में डाल दिया किंतु थोड़े ही समय के उपरांत वह पात्र भी उस मछली के लिए छोटा पड़ गया ।
यह देखकर सत्यव्रत अत्यंत विस्मित हो गए और उन्होंने उस मछली को पुनः नदी में डाल दिया । किंतु उसी समय वह मछली इतनी बड़ी हो गई कि उसका स्वरूप समस्त नदी में दृष्टिगोचर होने लगा ।
मत्स्य रूपधारी भगवान विष्णु |
भगवान विष्णु का सत्यव्रत को चतुर्भुज रूप में दर्शन देना
यह देखकर राजा सत्यव्रत अत्यंत आश्चर्यचकित हो उठे । उन्होंने अत्यंत विनम्रतापूर्वक उस मछली को प्रणाम किया और बोले, हे मत्स्य का रूप धारण किए हुए दिव्य विभूति आप कौन हो ? अज्ञानतावश आपको शरण में लेने की बात कहकर मैं आपसे क्षमा मांगता हू ।
सत्यव्रत के समक्ष चतुर्भुज रूप में श्री हरि |
हे दिव्य विभूति, आप मुझे अपना परिचय दीजिए । सत्यव्रत के अनुनए भरे वचन सुनकर श्रीहरि विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उनके समक्ष अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गए । श्री विष्णु बोले, "हे सत्यव्रत, मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूं । संसार का उद्धार करने के लिए ही मैंने यह मत्स्य अवतार धारण किया है ।"
श्री विष्णु का सत्यव्रत को प्रलय की स्तिथि से अवगत कराना
भगवान बोले, हे सत्यव्रत आज से ठीक सातवें दिन समस्त संसार में जल प्रलय आएगी । आकाश से इतना पानी बरसेगा कि मानो आकाश में छेद हो गया है । उस समय संसार में चारों ओर जल ही जल व्याप्त होगा ।
मत्स्य भगवान और सत्यव्रत |
जब समस्त पृथ्वी उस जल राशि में डूबने लगेगी तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नौका तुम्हारे पास आएगी । तुम सप्त ऋषियों को लेकर और संसार के समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीर, संसार के समस्त बीज और पशु- पक्षियों का एक- एक जोड़ा लेकर उस विशाल नौका में बैठ जाना ।
उस समय संसार में समस्त और जल प्लावन की स्थिति होगी और चारों और गहन अंधकार होगा । उस समय केवल सप्त ऋषियों की ज्योति से ही तुम देख पाओगे । उस समय तुम अपने मन में किसी भी प्रकार का भय और क्लेश व्याप्त मत होने देना, केवल एकाग्र चित्त होकर मेरा ही ध्यान करना । जब प्रचंड झंझावात के कारण नाव जल में डूबने लगेगी, तब मैं मत्स्य का रूप लेकर वासुकी नाग के साथ वहां आऊंगा ।
तुम उस नौका को वासुकी नाग के द्वारा मेरे सिंग से बांध देना । जब तक ब्रह्मा जी की रात्रि रहेगी तब तक मैं तुम्हें उस नौका में लेकर विचरण करता रहूंगा । उस समय जो भी प्रश्न तुम्हारे मन में उत्पन्न होंगे मैं तुम्हें उसका उत्तर देकर तुम्हारे मन की जिज्ञासा को शांत करूंगा । सत्यव्रत से यह वचन कहकर श्री हरि विष्णु अंतर्ध्यान हो गए ।
प्रलय के समुद्र में डगमगाती नौका |
राजा सत्यव्रत कुशा पर बैठकर भगवान विष्णु के कहे वचनों का स्मरण करने लगे । भगवान के कहे वचनों के अनुसार एक सप्ताह में सत्यव्रत ने सभी कार्य पूर्ण कर लिए ।
ठीक सात दिन के पश्चात प्रलय की स्थिति उत्पन्न हुई । आकाश से प्रलयंकारी मेघ बरसने लगे । महासागर ने अपनी मर्यादा छोड़ दी और देखते ही देखते समस्त पृथ्वी उस विशाल जल राशि में डूबने लगी ।
संसार में समस्त ओर जल प्रलय |
श्री विष्णु का मत्स्य अवतार धारण करना
ईश्वर की प्रेरणा से एक विशाल नोका सत्यव्रत के पास आई । राजा सत्यव्रत सप्त ऋषियों और समस्त जीवो का एक एक जोड़ा और वनस्पति आदि समस्त बीज लेकर उस नाव में बैठ गए । जब वह नौका प्रचंड झंझावात से डगमगाने लगी तो उस समय भगवान विष्णु, मत्स्य के रूप में सत्यव्रत के समक्ष प्रकट हुए । भगवान मत्स्य का रूप स्वर्णिम आभा से युक्त था । उनके शरीर का विस्तार चार लाख योजन था ।
मत्स्य रूपधारी श्री हरि |
सत्यव्रत ने वासुकी नाग की रस्सी बना कर उस नोका को विशाल मत्स्य के सिंग से बांध दिया । सप्तऋषियों और सत्यव्रत ने मत्स्य भगवान की अनेक प्रकार से स्तुति की ।
प्रलय के समुद्र में मत्स्य भगवान |
भगवान मत्स्य का सत्यव्रत को उपदेश देना
भगवान मत्स्य, सत्यव्रत और सप्त ऋषियों को उपदेश देते हुए |
प्रलयकाल समाप्त हो जाने के उपरांत मत्स्य भगवान ने उस नौका को सुमेरु पर्वत पर छोड़ दिया । नए कल्प के प्रारंभ में भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को वैवस्वत मनु का नाम दिया और उनके नाम से ही नए मन्वंतर का नाम वैवस्वत मन्वंतर रखा गया ।
भगवान विष्णु ने सप्तर्षियों, मनु एवं उसकी पत्नी शतरूपा को सृष्टि के संचालन के अनेक उपदेश दिए । श्री हरि विष्णु उन सब को अनेक वरदान देकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए ।
भगवान मत्स्य द्वारा हयग्रीव का वध
भगवान मत्स्य, हयग्रीव का वध करते हुए |
।। इति श्री ।।
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