नचिकेता की कथा

भक्त नचिकेता 


सृष्टि चक्र चलाने के लिए परमपिता ब्रह्म देव ने वेदों की रचना की थी। आर्यव्रत के मनीषियों ने वेदों का अध्ययन किया और  पुराण प्रकट किए । वस्तुतः चार वेदों का सार 18 पुराण है और 18 पुराणों का सार 108 उपनिषद है।


उपनिषदों में ईश्वर और आत्मा के गूढ़ रहस्य से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन आता है । प्रसिद्ध ग्रंथ कठोपनिषद में आत्मा और परमात्मा के गूढ़ रहस्य से संबंधित बालक नचिकेता की एक बहुत सुंदर कथा का वर्णन मिलता है ।


ऋषि वाजश्रर्वा का सर्वमेथ यज्ञ 

ऋषि गौतम के वंश में एक महान ऋषि उत्पन्न हुए थे जिनका नाम वाजश्रर्वा था। एक बार ऋषि वाजश्रर्वा ने सर्वमेथ यज्ञ.  का आयोजन किया। सर्वमेथ यज्ञ में यज्ञकर्ता को यज्ञ के पश्चात अपनी प्रिय वस्तुएं ऋषियों, मुनियों और अन्य योग्य याचको को दान देनी पड़ती है।

ऋषि वाजश्रर्वा ने भी घोषणा की थी कि वह यज्ञ की समाप्ति के पश्चात अपनी समस्त प्रिय वस्तुएं योग्य याचको को दान में दे देंगे। परंतु जब यज्ञ की समाप्ति का समय निकट आया तो ऋषि  वाजश्रर्वा संसार की माया से मोहित हो गए और परिणाम स्वरूप ब्राह्मणों को वृद्ध और कमजोर गाएँ दान में देने लगे ।

नचिकेता का अपने पिता को उत्कृष्ट दान देने का आग्रह करना 

वह वृद्ध गाएँ दूध देना तो दूर ठीक से चल भी नहीं सकती थी।   ऋषि वाजश्रर्वा का यह कार्य देखकर उनके पुत्र नचिकेता को अत्यंत विस्मय हुआ। वह अपने पिता के समीप आया और बोला, पिताजी आपने यज्ञ के आरंभ मै यह प्रतिज्ञा की थी कि आप अपनी संपूर्ण प्रिय वस्तुएं यज्ञ के पश्चात दान में दे देंगे, परंतु आप इसके विपरीत ब्राह्मणों को वह गाएँ दान में दे रहे हैं जो मृत्यु के समीप है। बालक नचिकेता की यह बात सुनकर ऋषि  वाजश्रर्वा कुछ नहीं बोले ।

नचिकेता पुनः अपने पिता से बोले, हे पिता आपने अपना परलोक सुधारने के लिए सर्वमेथ यज्ञ का आयोजन किया है और ब्राह्मणों को उत्कृष्ट वस्तुएं दान में देने का निश्चय किया है। परंतु आप निकृष्ट वस्तुएं दान में दे कर पाप के भागी क्यों बनते हो।नचिकेता अपने पिता से बोला, हे पिता आप मेरी विनती सुनिए और ब्राह्मणों को उत्कृष्ट वस्तुए ही दान में दीजिए। बालक नचिकेता बारंबार अपने पिता सेे, याचको के लिए उत्तम वस्तुए   दान में देने का आग्रह करने लगा।

नचिकेता की बातों का उसके पिता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब नचिकेता बोले, एक पिता को अपना पुत्र सबसे प्रिय होता है अतः आप मुझे बताएं कि आप मुझे किसे दान स्वरूप दे रहे हो। बालक नचिकेता ने अनेक बार यह प्रश्न अपने पिता से पूछा । नचिकेता के 25वीं बार एक ही प्रश्न के पूछने पर उसके पिता उस पर अत्यंत क्रोधित हो गए और बोले, जा मैंने तुझे मृत्यु के देवता यम को दान में दिया

ऋषि वाजश्रर्वा की संकल्प शक्ति के प्रभाव से नचिकेता उसी क्षण यमराज के लोक यमपुरी के द्वार मैं पहुंच गए। वह तीन दिवस तक बिना अन्न और जल लिए भूखे- प्यासे यमलोक के द्वार पर ही बैठे रहे। तीन दिवस के उपरांत यम देव नचिकेता के समक्ष आए । बालक नचिकेता द्वारा तीन दिवस तक अपनी प्रतीक्षा करता देख यम देव का मन करुणा से भर गया।


यम देव और नचिकेता का संवाद 

यम देव बोले, हे नचिकेता तुमने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए निराहार रहकर तीन दिवस तक केवल मेरा ही चिंतन किया है इसलिए मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। तुम्हारी जो इच्छा हो उसे मांग लो ।

नचिकेता ने पहला वर मांगा और कहा, हे यम देव जिस उद्देश्य से मेरे पिता ने सर्वमेथ यज्ञ किया है वह सफल हो जाए । उनका लोक और परलोक दोनों में ही उद्धार हो । मेरे पिता मुझसे पहले की भांति ही अनन्य प्रीति रखे । यम देव बोले ऐसा ही होगा ।

नचिकेता ने अपने दूसरे वरदान के रूप में यम देव से पूछा, स्वर्ग में कोई भय व्याप्त नहीं है। वहा ना मृत्यु का भय है ना जीवन का और ना ही वहां कोई अन्य भय व्याप्त है। अतः आप मुझे स्वर्ग की प्राप्ति का उपाय बताइए ।

यम देव बोले, "नचिकेता जो व्यक्ति चारों आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ वानप्रस्थ और सन्यास मैं अपने कर्तव्य का पालन करता हुआ संयमित जीवन व्यतीत करता है वह व्यक्ति अवश्य ही स्वर्ग को प्राप्त होता है।" 

नचिकेता द्वारा यम देव से परम तत्व आत्मा का रहस्य पूछना 

अपने तीसरे वर के रूप में नचिकेता ने यम देव से आत्मा के गुण और रहस्य के विषय में प्रश्न किया । उस 13 वर्षीय बालक नचिकेता के मुख से यह प्रश्न सुनकर यम देव अत्यंत विस्मित हुए । यमदेव बोले, आत्मा का रहस्य तो बड़े-बड़े ऋषि - मुनि भी नहीं जानते और तुम तो एक अबोध बालक हो इसलिए कुछ और मांग लो । यम देव ने नचिकेता को अनेक प्रकार के प्रलोभन दिए परंतु नचिकेता अपनी बात पर अडिग रहा ।


यम देव द्वारा आत्मा का रहस्य प्रकट करना 

विवश होकर यम देव ने नचिकेता के समक्ष आत्मा का गूढ़ रहस्य प्रकट किया। यम देव बोले, हे नचिकेता तुम मनुष्य के शरीर को एक रथ समझौ और समस्त इंद्रियों को इस रथ के घोड़े मानो । मनुष्य का मन इन घोड़ों की लगाम है और बुद्धि सारथी है। विषय वह मार्ग है जिस पर यह घोड़े दौड़ते हैं। मनुष्य की आत्मा इस रथ पर सवारी करने वाला रथी है।

जिस प्रकार सारथी के असावधान होने पर रथ के घोड़े उसके वश में नहीं रहते और वह रथ आगे आने वाले अवरोधों से टकराकर टूट जाता है जिससे उस रथ में बैठे हुए सारथी और रथी दोनों घायल हो जाते है। ठीक उसी प्रकार यह अविनाशी आत्मा इंद्रियां, मन, और बुद्धि के अधीन होकर अपने परम अविनाशी स्वरूप को भूल जाता है और बार - बार पुनरागमन में लगा रहता है । अर्थात बार- बार जन्म लेता है और बार-बार मृत्यु को प्राप्त करता है।

यम देव बोले मनुष्य की आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है और शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। मनुष्य के जन्म का एकमात्र उद्देश्य उस परम तत्व अविनाशी परमात्मा को प्राप्त करना है । हे नचिकेता, आत्मा का स्वरूप जानने वाले मनुष्य को अपनी बुद्धि को एकाग्रचित्त कर के मन की लगाम को कसकर पकड़ना चाहिए अर्थात विषयों के पीछे भागना नहीं चाहिए और तप के द्वारा अपनी आत्मा को जानना चाहिए ।
मनुष्य का अपनी आत्मा से साक्षात्कार करना ही ब्रह्म ज्ञान है।  वेदों का सार भी यही ज्ञान है। 

यम देव से आत्मा के गुण- रहस्य का ज्ञान प्राप्त कर बालक नचिकेता अत्याधिक प्रभावित हुआ। नचिकेता यम देव से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर पुनः अपने पिता के पास पहुुंचा ।उसके पिता ने उसे देखते ही हृदय से लगा लिया। यम देव के बताये मार्ग का अनुसरण कर नचिकेता ने भौतिक लोक मैं अत्यंत प्रतिष्ठा पाई और अंत मैं परम तत्व मैं विलीन हो गया ।

                              ।। इति श्री।।

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