भगवान विष्णु ने संसार की रक्षा के लिए कृष्ण अवतार लिया था । इस अवतार में उन्होंने कई राक्षसों का वध करके उन्हें सद्गति दी थी । इसी क्रम में उन्होंने राजा पौंड्रक का उद्धार किया था जो अपने आप को मिथ्या वासुदेव कहता था ।
पौंड्रक का परिचय
पौंड्रक श्रीकृष्ण से शत्रुता का भाव रखता था । वह अपने आप को भगवान मानता था । पौंड्रक बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की कथाएं सुना करता था । वह श्रीकृष्ण का समकालीन था, इसलिए श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन उसके समक्ष होता रहता था ।
संयोग से पौंड्रक के पिता का नाम वासुदेव था इसलिए वह अपने आप को वासुदेव पौंड्रक कहलाना पसंद करता था । श्री कृष्ण की कथाएं सुनकर पौंड्रक अपने आप को वासुदेव ही समझता था । उसने तपस्या करके कई दिव्यास्त्र प्राप्त कर लिए थे ।
राजा पौंड्रक |
उसने श्रीकृष्ण के सभी दिव्य चिन्ह जैसे मोरपंख, पीतांबर और शंख, चक्र, गदा और शारग़म धनुष का प्रतिरूप बनवा कर धारण कर लिया था । बचपन से श्रीकृष्ण की कथाएं सुनने के कारण वह श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था और अपने आप को श्रीकृष्ण से श्रेष्ठ साबित करना चाहता था ।
पौंड्रक अपने चाचा वीरमणि के विरुद्ध षड्यंत्र करके पौंड्रपुर का राजा बना था । राजा बनने के बाद उसने अपने नगर में घोषणा करवा दी थी कि वही भगवान है, और समस्त प्रजा को उसकी ही पूजा करनी चाहिए । जो इस आज्ञा को नहीं मानता था, पौंड्रक उसको मृत्यु दंड देता था ।
पौंड्रक ने अपनी शक्ति के बल पर आसपास के कई राज्यों को जीत लिया और एक बड़ी सेना बना ली थी । वह उन सभी राज्यों से कर लेता था । उसने उन सब राजाओं से कहा कि वह उसको ही भगवान माने, श्रीकृष्ण को नहीं । वह अपने दिव्यास्त्रों की सहायता से युद्ध में श्रीकृष्ण को पराजित कर देगा । इसलिए समस्त संसार में उसकी ही पूजा होनी चाहिए ।
पौंड्रक और दिवित का मिलन
पौंड्रक की शक्ति बहुत बढ़ गई थी । एक दिवित नाम का वानर जो नरकासुर का मित्र था वह पौंड्रक से आ मिला । दिवित, नरकासुर के वध के उपरांत श्रीकृष्ण पर बहुत कुपित था । वह बहुत भयंकर और बलशाली वानर था । वह वानर समस्त प्रजा को बलपूर्वक पौंड्रक को भगवान मानने के लिए बाध्य करता था ।
वानर दिवित |
हनुमान जी का पौंड्रक को समझाना
श्रीकृष्ण की प्रेरणा से महात्मा हनुमान एक किसान का वेश बनाकर पौंड्रक को समझाने के लिए उसकी राज्यसभा में गए । परंतु बल के मद में चूर पौंड्रक ने उनका अपमान कर दिया । ईश्वर की आज्ञा से वीरवर हनुमान जी चुपचाप पौंड्रक की राज्यसभा से अपने निवास स्थान गंधमादन पर्वत पर चलेे गये ।
श्रीकृष्ण ने पौंड्रक को सुधरने का एक और अवसर दिया । एक बार वीरवर हनुमान जी ने कमल के फूल श्रीकृष्ण को अर्पित किए । वही कमल के फूल श्रीकृष्ण ने माया के द्वारा पौंड्रक के महल में भेज दिए । कमल के फूलों की सुगंध से वहां का समस्त वातावरण सुगंधित हो गया था । तब पौंड्रक की पत्नी तारा ने कहा यह कमल के फूल तो गंधमादन पर्वत के हैं, ये यहां कैसे आ गए ?
कमल के पुष्प |
वह कमल के पुष्प अति दिव्य थे । पौंड्रक ने दिवित को आज्ञा दी कि वह गंधमादन पार्वत पर जाकर कमल के फूल ले आए ।
दिवित द्वारा हनुमान जी को बंदी बनाना
दिवित, गंधमादन पर्वत पहुंचा और वहां का वातावरण अशांत करने लगा । उसने वृक्षों को उखाड़ दिया और तपस्या में लीन हनुमान जी पर भी प्रहार किया । उसके प्रहार से कुपित होकर हनुमान जी उसको मारने के लिए दौड़े परंतु श्रीकृष्ण के संकेत से हनुमान जी शांत हो गए ।
तपस्या में लीन श्री हनुमान जी |
दिवित ने हनुमान जी को बंदी बना लिया और उन्हें पौंड्रक की राज्यसभा मैं ले गया । हनुमान जी को बंदी बना हुआ देखकर पौंड्रक अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने दिवित की बहुत प्रशंसा की । वहा हनुमान जी ने पौंड्रक को समझाने का प्रयास किया, परंतु पौंड्रक ने श्रीकृष्ण का अपमान कर दिया और स्वयं को ही इस जगत का इश्वर कहा ।
यह सुनकर हनुमान जी क्रोधित हो गए और बोले कि भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से ही मैं यहां आया हूं अन्यथा मुझे कोई भी बंधन में बांध नहीं सकता । यह कहकर हनुमान जी ने दिवित को अपनी पूछ से उठा लिया और पौंड्रक की राज्यसभा ध्वस्त कर दी । दिवित को घायल अवस्था में वहीं छोड़कर हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर चले गए ।
हनुमान जी और वानर दिवित |
दिवित वध
हनुमान जी के जाने के उपरांत पौंड्रक बहुत क्रोधित हो गया और उसने कृष्ण और बलराम का वध करने के लिए दिवित को द्वारिका में भेजा । उस समय श्री बलराम जी अपनी पत्नी रेवती के साथ भ्रमण कर रहे थे । वह वानर बलराम जी के पास गया और उन्हें ललकारने लगा । बलराम जी पर उसने कई प्रहार किए परंतु बलराम जी ने अपने मुसल के प्रहार से उसका वध कर दिया ।
श्री बलराम वानर दिवित का वध करते हुए |
नारद जी का पौंड्रक के पास आगमन
इश्वरइच्छा से संपूर्ण लोको के ज्ञाता नारद राजा पौंड्रक के पास गए । पौंड्रक ने नारद जी को प्रणाम किया और कहां कि आप तो समस्त लोको में विचरण करते हो इसलिए आपको यह प्रचार करना चाहिए कि वासुदेव पौंड्रक ही भगवान है, वह वासुदेव कृष्ण नहीं । तब नारद जी ने उसको समझाने का प्रयास किया और कहां कि जगत के ईश्वर श्रीकृष्ण ही है, इसलिए आपको उन से बैर नहीं करना चाहिए ।
नारद जी का पौंड्रक के पास आगमन |
नारद जी की बात सुनकर पौंड्रक कुपित हो गया और उसने नारद जी को अपने महल से जाने के लिए कहा । वहां से निकलकर नारद जी श्रीकृष्ण के पास पहुंचे । उस समय श्रीकृष्ण बद्रीकाश्रम में थे । इस घटना का वृतांत नारद जी ने श्रीकृष्ण को सुनाया । श्रीकृष्ण ने नारद जी को संतावना दी और कहा कि वह शीघ्र ही पौंड्रक का संहार करेंगे ।
श्री कृष्ण और नारद जी |
पौंड्रक वध
पौंड्रक ने एक बड़ी सेना के साथ द्वारिका पर आक्रमण के लिए प्रस्थान किया । उसकी सेना में उसका मित्र काशी नरेश और निषादों का राजा एकलव्य भी था । वह रात के समय ही द्वारिका पहुंच गया और यादवों को युद्ध की चुनौती देने लगा ।
शत्रु की चुनौती सुनकर समस्त यादव वीर युद्ध के मैदान में आ गए । दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया । एकलव्य के तीखे बाणों से यादव सेना को बहुत क्षति पहुंची । पौंड्रक की सेना ने द्वारिका के पूर्वी भाग को ध्वस्त कर दिया ।
यह देख कर महारथी सात्यकी, पौंड्रक से युद्ध करने के लिए आए । पौंड्रक और सात्यकी में अत्यंत भयानक और विस्मयकारी युद्ध होने लगा । उस युद्ध में कभी महारथी सात्यकी, पौंड्रक पर भारी पड़ते थे तो कभी पौंड्रक, सात्यकी पर । उस भयानक युद्ध का अंत नहीं जान पड़ता था ।
सात्यकी और पौंड्रक |
वहीं दूसरी ओर महात्मा बलराम और एकलव्य का युद्ध प्रारंभ हो गया । बलराम जी ने शीघ्र ही एकलव्य को पराजित कर दिया और वह द्वारिका से भागकर किसी अन्य द्वीप में छिप गया ।
सात्यकी ओर पौंड्रक को युद्ध लड़ते हुए सुबह हो गई थी । तब श्रीकृष्ण का द्वारिका में आगमन हुआ । श्रीकृष्ण ने सात्यकी की बहुत प्रशंसा की और उन्हें विश्राम करने को कहा । श्रीकृष्ण ने पौंड्रक को युद्ध की चुनौती दी ।
पौंड्रक और श्रीकृष्ण |
पौंड्रक, श्रीकृष्ण के समान ही समस्त दिव्य चिन्हों से युक्त होकर युद्ध करने के लिए आया । उसने श्रीकृष्ण के समान ही पांचजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कोमोदकी गदा, नंदक खडग और शारगम धनुष धारण किया हुआ था ।
युद्ध के मैदान में पौंड्रक ने वासुदेव पर दिव्यास्त्रो का प्रहार किया । उन सब दिव्यास्त्र को वासुदेव ने शीघ्र ही नष्ट कर दिया । तब पौंड्रक ने अपना सुदर्शन चक्र श्रीकृष्ण पर चलाया । श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को पौंड्रक का वध करने की आज्ञा दी ।
श्री कृष्ण |
श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र ने पौंड्रक के सुदर्शन चक्र को नष्ट कर दिया और पौंड्रक का सर धड़ से अलग कर दिया । इसके उपरांत श्रीकृष्ण ने काशी नरेश का भी वध कर दिया । पौंड्रक वध के उपरांत आसमान से देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की ।
।। इति श्री।।
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