भक्त ध्रुव की कथा

मानव जीवन परमात्मा की  सर्वोत्तम कृति है। मनुष्य के जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करना है। परंतु कोई भी आत्मा बिना मानव शरीर के परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकती । इसी लिए देवता भी मानव शरीर को प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। आत्मा का परमात्मा को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय, इच्छा शक्ति और गहन लग्न की आवश्यकता होती है। इसी इच्छा शक्ति के बल पर भक्त ध्रुव ने निराकार नारायण को साकार किया था।


ध्रुव के परिवार का परिचय 

भक्त ध्रुव विश्व विजेता सम्राट उत्तानपाद का जेष्ठ पुत्र था। राजा उत्तानपाद की दो रानियां थी। बड़ी रानी का नाम सुनीति और छोटी रानी का नाम सुरुचि था। राजा उत्तानपाद के दो पुत्र थे । ध्रुव बड़ी रानी सुनीति का पुत्र था और और उत्तम छोटी रानी सुरुचि का पुत्र था। छोटी रानी सुरुचि का बड़ी रानी सुनीति से अधिक सुंदर होने के कारण राजा छोटी रानी से अधिक स्नेह रखता थाा। राजा उत्तानपाद अक्सर छोटी रानी के पास ही रहता था।

एक बार राजा उत्तानपाद विश्व विजय कर अपने महल में आया तो छोटी रानी सुरुचि के कक्ष में ही रुका। ना तो उसने बड़ी रानी सुनीति को वहां बुलाया और ना ही वह उससे मिलने गया। अपने पिता से मिलने की इच्छा से बालक ध्रुव अपनी मां से छोटी रानी सुरुचि के कक्ष में जाने की हठ करने लगा। उसकी मां ने उसे वहां जाने से मना किया। वह ध्रुव से बोलीं, पिताजी शीघ्र ही मिलने आ जाएंगे। अपने पिता से मिलने की तीव्र इच्छा से बालक ध्रुव, सुरुचि के कक्ष में चला गया।

सुरुचि के कक्ष में ध्रुव अपने पिता से बहुत प्रेम से मिला। उसके पिता ने अपने छोटे बेटे उत्तम को गोद में बिठा रखा था। ध्रुव भी अपने पिता के गोद में बैठने की हठ करने लगा। परंतु छोटी रानी सुरुचि ने ध्रुव को पिता की गोद में बैठने से मना कर दिया। उसने कहा, पिता की गोद में बैठने का अधिकार केवल उत्तम को है। उसने ध्रुव से कहा, अगर उसने अपने पिता की गोद में बैठना है तो जाकर भगवान विष्णु की तपस्या करें और उनसे  यह वर मांगे की वह अगले जन्म में सुरुचि का ही पुत्र बनेे। तभी वह अपने पिता की गोद में बैठ पाएगा।

भगवान विष्णु की तपस्या का निश्चय करना 

सुरुचि की यह बात सुनकर बालक ध्रुव रोता हुआ अपनी मां के पास आ गया। उसने अपनी मां को सारी बात बताई। ध्रुव ने अपनी मां से विष्णु भगवान के बारे में पूछा। उसकी मां ने बताया, विष्णु जगत के पालनहार हैं। सुनीति ने ध्रुव को विष्णु भगवान के अवतारों अनेक कथाएं सुनाई। भगवान के अवतारों की कथा सुनकर बालक ध्रुव ने मन ही मन भगवान विष्णु की तपस्या करने का निश्चय किया। वह रात को अपनी मां को सोता हुआ छोड़कर महल से चला गया।

चलते चलते ध्रुव नगर की सीमा से बाहर आ गया। रास्ते में जब ध्रुव ने कुछ लोगों को देखा तो वह उनके पास चला गया और पूछने लगा, आपको मालूम है कि भगवान विष्णु कहां रहते हैंं? वह सब डाकू थे, उन्होंने ध्रुव के सारे गहने ले लिए। वह उसे  एक पहाड़ी पर ले गए। जैसे ही वह ध्रुव को पहाड़ी से नीचे गिराने लगे, तभी एक मायावी सर्प वहां प्रकट हो गया और उस सर्प ने सभी डाकुओं को डस लिया। वास्तव मैं यह सब देवी लक्ष्मी ने किया था जो अदृश्य रूप में ध्रुव के साथ चल रही थी। 


नारद जी का मार्ग दर्शन 

रात को ध्रुव जंगल में ही सो गया और सुबह फिर भगवान को ढूंढने लगा। ध्रुव की यह दशा देखकर भगवान विष्णु के परम भक्त देवर्षि नारद ध्रुव के पास गए। नारद जी बोले, बालक तुम कौन हो इतनी छोटी सी आयु में जंगल मैं क्यों भटक रहे हो ?  ध्रुव ने नारद जी को अपनी सारी कथा सुनाई। उसने नारद जी से भगवान विष्णु के बारे में पूछा। नारद जी ने कहा, इतनी छोटी सी आयु में तुम्हें घर जाना चाहिए, परंतु बालक ध्रुव उनसे विष्णु भगवान को प्राप्त करने का उपाय पूछने लगा। तब नारद जी बोले, केवल तपस्या के द्वारा ही भगवान को पाया जा सकता है। नारद जी ने ध्रुव को भगवान विष्णु के द्वादक्षरी मंत्र 
               
              "ओम नमो भगवते वासुदेवाय "   
                
का लगातार जाप करने को कहा। 
नारद जी की आज्ञा से बालक ध्रुव जंगल के अंदर चला गया और एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की तपस्या करने लगा।  देवी लक्ष्मी को ध्रुव की अल्पायु देखकर बड़ी चिंता हुई कि कोई जंगली जानवर ध्रुव को मारकर ना खा जाए। यह सोचकर देवी लक्ष्मी देवी पार्वती के पास गई और ध्रुव की रक्षा के लिए उनसे प्रार्थना करने लगी। तब पार्वती जी ने अपने वाहन सिंह को ध्रुव की जंगली जानवरों से रक्षा करने की आज्ञा दी।

इंद्र देव का असंतोष 

बालक ध्रुव काफी समय से भगवान विष्णु की तपस्या में लीन था, तभी एक दिन चित्ररथ और मणिध्वज नाम के गंधर्व वहां से निकले, उनको ध्रुव की कठिन तपस्या देखकर बहुत विस्मय हुआ। यह बात उन्होंने देवराज इंद्र को बताई। इंद्र ने सोचा,  कहीं वर में बालक ध्रुव भगवान विष्णु से इंद्रासन ना मांग ले।



इंद्र ने अप्सरा लक्षिता को ध्रुव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। लक्षिता ध्रुव की मां का भेष बनाकर ध्रुव के पास गई और ध्रुव को महल में चलने के लिए आग्रह करने लगी। वह बोली, तुम्हारे पिताजी अब तुम्हें गोद में बिठा लेंगे इसलिए  तपस्या छोड़ो और महल चलो। भगवान की तपस्या में लीन ध्रुव को इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लक्षिता हार कर वापस चली गई । फिर इंद्र ने अग्नि देव को ध्रुव की तपस्या भंग करने की आज्ञा दी। अग्नि देव ने संपूर्ण वन में अग्नि प्रज्वलित कर    दी परंतु भगवान की तपस्या में लीन ध्रुव पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अग्नि देव भी हार कर वापस आ गए।

ध्रुव का अत्यंत कठिन तपस्या करना 



ध्रुव
को भगवान विष्णु की तपस्या करते हुए काफी समय व्यतीत हो गया था। उन्होंने आहार और जल दोनों का त्याग कर दिया था फिर भी भगवान का उन्हें दर्शन नहीं हो रहा था। एक बार नारद जी उनके पास गए और बोलेे, कि ध्रुव अब तुम महल वापस चले जाओ। बालक ध्रुव बोला, नारद जी मैं भगवान विष्णु को अपने मन में तो देख लेता हूं परंतु मैं उनके दर्शन  बाहर नहीं कर पा रहा हूं। नारद जी बोले, भगवान विष्णु के दर्शन का मार्ग अत्यंत कठिन है, तुम उसे कर नहीं पाओगे। बालक ध्रुव के बहुत आग्रह करने पर नारद जी ने कहा, कि तुम अपनी साांस रोक कर भगवान विष्णु का अपने मन में ही जाप करो, तभी तुम उनके साकार रूप का दर्शन कर पाओगे।

भगवान विष्णु का साकार रूप लेना 

बालक ध्रुव ने ओम के उच्चारण के साथ अपनी सांस रोक ली और मन ही मन भगवान के द्वादक्षरी  मंत्र "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप करने लगा। ध्रुव का यह कार्य देखकर सम्पूर्ण सृष्टि में प्राणवायु शीर्ण होने लगी। जब इंद्र का सिंहासन भी डोलने लगा, तब सारे देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे इस समस्या के समाधान का उपाय पूछने लगे। तब ब्रह्मदेव बोले, बालक ध्रुव भगवान विष्णु की तपस्या कर रहा है इसलिए हमें विष्णु  की शरण मैं जाना चाहिए। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे इस समस्या का समाधान पूछने लगे।


श्रीभगवान बोले," मैं शीघ्र ही ध्रुव को  दर्शन देकर इस समस्या का समाधान करता हूं।" बालक ध्रुव भगवान विष्णु का जाप कर रहा था, तभी भगवान विष्णु का चित्र उसके मन से हट गया और उसने घबराकर आंखें खोल दी। ध्रुव ने देखा, भगवान विष्णु शंख, चक्र, गदा और पद्म के लिए चतुर्भुज रूप में उसके समक्ष खड़े हैं।

ध्रुव भगवान विष्णु से पूछने लगा, कि क्यों उसके पिता ने उसको गोद में नहीं बिठाया और उसकी छोटी माता ने के उसका तिरस्कार किया ? भगवान ने प्रेम से बालक ध्रुव के सिर पर हाथ रखा और उसे अपनी गोद में बिठाया। अब ध्रुव का मन शांत हो चुका था वह प्रभु से बोला, आपकी गोद में बैठने के बाद अब मुझे कुछ पाने की इच्छा नहीं है।

भगवान विष्णु बोले, इतनी अल्पायु में किसी ने भी मेरी इतनी कठोर तपस्या नहीं की है इसलिए मैं तुम्हें नक्षत्र लोक में सबसे ऊंचा स्थान देता हूं। समय के अंत तक वह लोक ध्रुव लोक  के नाम से जाना जाएगा। 



अब तुम अपने घर चले जाओ और मेरी कृपा से तुम वहां पर सुख पूर्वक राज्य करते हुए समय व्यतीत करो। अंत मैं तुम इस लोक को भोग कर ध्रुव लोक को प्राप्त होगे। आज भी उनके नाम का एक तारा ध्रुव तारा पृथ्वी की कक्षा मे उत्तर दिशा मे स्थित है। सारा नक्षत्र मंडल इस तारे की परिक्रमा करता है।

                                 ।। इति श्री ।। 
   
                                        🙏






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