भगवान सूर्य इस संसार के प्रत्यक्ष देवता है । यह अपनी ऊर्जा से समस्त संसार को प्रकाशित करते हैं । पुराणों में सूर्य और चंद्र को भगवान के नेत्र बताया गया है । पुराणों में भगवान सूर्य की अनेक प्रकार से स्तुति की गई है और इन्हें सृष्टि की आत्मा कहा गया है । यह अपने सात अश्ववो के रथ पर सवार होकर पूर्व से उदित होते हैं और समस्त संसार को प्रकाशित करते हुए पश्चिम में अस्त हो जाते हैं ।
भगवान सूर्य |
भगवान सूर्य के रथ में सात अश्व जुते हुए हैं । यह सभी सात अश्व अलग-अलग रंग के है । इनको भगवान सूर्य की प्रकाशमान किरणें भी कहां गया है । ऐसी मान्यता है कि यह सात घोड़े सप्ताह के अलग-अलग दिनों को दर्शाते हैं । इनके नाम है गायत्री, भ्रांति, उष्णिक, जगती, त्रिस्तप, अनुस्तप और पंक्ति । सूर्य भगवान के रथ के सारथी अरुणदेव है । सूर्य भगवान के रथ में एक ही पहिया लगा हुआ है और उसमें 12 रेखाएँ है जो साल के 12 महीने को दर्शाती है ।
सूर्य भगवान को ज्योतिष विज्ञान में सबसे ऊंचा स्थान मिला है। सभी ग्रह इन की परिक्रमा करते हैं और इन्हीं से ऊर्जा प्राप्त करते हैं । सूर्य सभी ग्रहो के राजा है । ज्योतिष गणना के अनुसार सूर्य एक राशि में एक महीना ही रहते हैं और 1 वर्ष में सभी 12 राशियों में भ्रमण करके यह मकर राशि में स्थित होते हैंं ।
नवग्रह |
जब सूर्य, मकर राशि में प्रवेश होते है तो इसे उत्तरायण काल कहा जाता है । उत्तरायण काल में दिन बड़े होते है रातें छोटी होती है और गर्मी ज्यादा पड़ती है । जब सूर्य, कर्क राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे दक्षिणायन काल कहा जाता है । दक्षिणायन काल में दिन छोटे होते हैं रातें बड़ी होतीं है और सर्दी ज्यादा पड़ती है । 14 जनवरी से लेकर 21 जून तक उत्तरायण का समय होता है और 22 जून से 13 जनवरी तक दक्षिणायन का समय होता है ।
सूर्य देव के जन्म की कथा
सृष्टि की उत्पत्ति के समय श्री हरि विष्णु की नाभि से एक कमल दल प्रकट हुआ था जिससे परम पिता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी । उस समय चारों ओर अंधकार व्याप्त था । उस समय परम पिता ब्रह्मा ने ओम शब्द का उच्चारण किया था जिससे एक प्रकाश पुंज प्रकट हुआ था और उस प्रकाश कुंज से सारे संसार का अंधकार दूर हो गया था । वही प्रकाश पुंज भगवान सूर्य का आदि रूप माना जाता है ।
श्री विष्णु की नाभि से ब्रह्म देव की उत्पति |
जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि को रचना प्रारंभ किया तब उन्होंने ऋषि मारीच को उत्पन्न किया और मारीच से कश्यप ऋषि का जन्म हुआ । कश्यप ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की 13 कन्याओं से हुआ था । उन कन्याओं में आदिति सबसे बड़ी थी और कश्यप ऋषि उससे विशेष स्नेह रखते थे ।
देवी अदिति और ऋषि कश्यप का सूर्य देव का तप करना
प्राचीन काल में एक बार देवों और असुरों का संग्राम हुआ था जिसमें देवों की पराजय हुई थी । उस समय स्वर्ग पर असुरों का अधिकार हो गया था । एक बार नारद ऋषि देवी अदिती के पास गए और बोले कि देवताओं को उनका अधिकार दिलाने के लिए आप सूर्य देव की तपस्या करो और उनसे यह वर मांगो कि वह आपके पुत्र के रूप में जन्म ले ।
ऋषि कश्यप और देवी अदिति |
देवी अदिती और ऋषि कश्यप ने सूर्य देव की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर सूर्य देव प्रकट हो गए और उन्हें वर मांगने को कहा । ऋषि बोले की देवताओं को उनका अधिकार दिलवाने के लिए आप हमारे पुत्र के रूप में जन्म ले । सूर्य देव उनको वरदान देकर चले गए । समय आने पर माता अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का जन्म हुआ । सूर्य देव के जन्म से प्रकृति में चारों तरफ उत्साह और उमंग की लहर दौड़ गई।
इसके पश्चात सूर्य देव ने असुरों को पराजित करके इंद्र को उसका अधिकार दिलवाया । त्रिदेव ने उन्हें ग्रहों का राजा माना और फिर सूर्य देव सूर्य मंडल के सूर्य लोक में स्थित हो कर संसार को प्रकाशित करने लगे । सूर्य देव अपने कर्तव्य का बड़ी निष्ठा से पालन करते थे परंतु संसार चक्र चलाने के लिए ब्रह्मा जी को सूर्य देव के समान ही उनके पुत्रों की आवश्यकता थी ।
सूर्य देव के विवाह की कथा
ब्रह्मदेव ने नारद जी को देव शिल्पी विश्वकर्मा के पास भेजा। विश्वकर्मा जी भी उन दिनों अपनी पुत्री संज्ञा के लिए योग्य वर को तलाश रहे थेे । नारद जी, विश्वकर्मा जी के पास गए और बोले की परमपिता ब्रह्मदेव ने सूर्य और संज्ञा का रिश्ता तय किया है परंतु सूर्य देव को अपना जामाता बनाना इतना सरल नहीं है । नारद जी ने विश्वकर्मा जी और उनकी पत्नी को सूर्य देव की तपस्या करने को कहा ।
विश्वकर्मा जी और उनकी पत्नी की तपस्या से सूर्य देव प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी संज्ञा का पति बनना स्वीकार किया परंतु सूर्य देव ने विश्वकर्मा जी से कहा कि इसके लिए वह उन के पिता ऋषि कश्यप और माता अदिति से बात करेंं ।
ऋषि कश्यप और देवी अदिति ने यह रिश्ता सहर्ष ही स्वीकार कर लिया । त्रिदेवो की उपस्थिति में सूर्य देव का विवाह देवी संज्ञा से हुआ । देवी संज्ञा अति कोमल थी इसलिए वह सूर्य देव के तेज से सदा भयभीत रहती थी । सूर्य देव के तेज से देवी संज्ञा के अंग झुलस गए थे परंतु फिर भी वह अपनी इच्छा के विपरीत सूर्य देव के साथ रह रही थी ।
सूर्य देव और देवी संज्ञा |
सूर्य देव के पुत्रों और पुत्रियों के जन्म की कथा
सूर्य देव के देवी संज्ञा से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम उन्होंने विवस्वान रखा । वह इस सातवें मन्वंतर के मनु कहलाते हैं । इसके पश्चात सूर्य देव के यम और यमी के रूप में दो जुड़वा बच्चे उत्पन्न हो गए । ब्रह्मा जी की आज्ञा से यमदेव मृत्यु के देवता बने और यमी, देवी यमुना के नाम से नदी हो गई और पृथ्वी पर बहने लगी ।
यम देवी |
विवस्वान |
देवी संज्ञा, सूर्यदेव के ताप से अत्यंत विचलित रहती थी इसलिए उन्होंने अपनी छाया से बिल्कुल अपने जैसी दिखने वाली एक देवी प्रकट की और उसका नाम छाया रखा । छाया को सूर्य देव के साथ रहने की आज्ञा दे कर देवी संज्ञा वहां से अपने पिता विश्वकर्मा जी के यहां चली गई। विश्वकर्मा जी ने अपनी पुत्री देवी संज्ञा को बहुत समझाया कि वह अपने पति के घर चली जाए परंतु देवी संज्ञा नहीं मानी ।
देवी संज्ञा वहां से उत्तर के हरे-भरे मैदानों में चली गई और घोड़ी का रूप बनाकर सूर्य देव की आराधना करने लगी । वे उस समय केवल घास और पत्ते खाकर ही जीवन व्यतीत करती थी ।
सूर्य देव और देवी छाया की संताने
उधर सूर्यलोक में देवी छाया, सूर्य देव के साथ सुख पूर्वक समय व्यतीत कर रही थी । देवी छाया ने सूर्य देव के एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने सावर्णी मनु रखा सावर्णी मनु
आज भी हिमालय मैं तपस्या कर रहे है । वे अगले मनवनतर में मनु का पद ग्रहण करेगे ।
संसार के कल्याण के लिए देवी छाया ने सूर्यपुत्र, शनि देव को जन्म दिया । शनि देव ने भगवान शिव की तपस्या की और सब लोको में पूजित ग्रह का पद प्राप्त किया । शनि देव पृथ्वी लोक में न्याय के देवता बनेे ।
शनि देव |
देवी छाया की एक पुत्री भी हुई जिसका नाम ताप्ती रखा गया । देवी ताप्ती नदी होकर पृथ्वी पर बहने लगी । ये नदी मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मूलताई नामक स्थान से निकलकर अरब सागर मैं समा जाती है । इस नदी मैं सात प्रसिद्ध कुंड बने हुए है । यहाँ कार्तिक के महीने मैं मेला लगता है ।
सूर्य देव की देवी छाया से जो दूसरी पुत्री हुई उसका नाम वृष्टि अथवा भद्रा हैै । ये बहुत गुस्सैल स्वाभाव की है । ब्रह्मा जी ने इनके स्वाभाव को नियंत्रित करने के लिए इन्हें नक्षत्र लोक मैं स्थापित किया और काल गणना के प्रमुख अंक वृष्टिकरण मैं स्थान दिया है ।
देवी छाया अपने पुत्रों से देवी संज्ञा के पुत्रों की अपेक्षा अधिक स्नेह करती थी इस कारण जब सूर्य देव उससे क्रोधित हुए तो उसने सूर्य देव को बताया कि देवी संज्ञा ने ही अपनी छाया से उसे उत्पन्न किया है । यह कहकर देवी छाया वहा से चली गई और देवी संज्ञा मैं समा गई ।
विश्वकर्मा द्वारा सूर्यदेव के तेज को नियंत्रित करना
यह बात सुनकर सूर्यदेव बहुत क्रोधित हुए और अपने ससुर विश्वकर्मा जी के पास गए । वह विश्वकर्मा को अपने तेज से भस्म कर देना चाहते थे । विश्वकर्मा जी ने सूर्य देव का बहुत आदर सत्कार किया और उन्होंने कहा कि अगर आप आज्ञा दें मैं अपनी विद्या से आपके तेज को नियंत्रित कर दूंगा ।
सूर्य देव की आज्ञा से विश्वकर्मा जी ने उनके तेज को 12 भागों में विभक्त किया, जिससे 12 आदित्य प्रकट हुए । यह आदित्य है धाता,आर्यमा,मित्र, वरुण, अंश, भग, इंद्र, विवस्वान, पूषा,पर्जन्य, तवष्टा और 12 वे विष्णु उत्पन्न हुए जो अंत में प्रकट होने के कारण सबसे छोटे होते हुए भी गुणों में सर्वश्रेष्ठ है ।
सूर्य |
अश्विनी कुमारो का जन्म
इसके पश्चात सूर्य देव, देवी संज्ञा को ढूंढने निकले उन्होंने देखा देवी संज्ञा घोड़ी के रूप में उत्तर के हरे-भरे मैदानों में उनकी आराधना कर रही है । वह घोड़े का ही रूप बनाकर उनके पास गए और उनके साथ रहने लगे । उसी रूप में देवी संज्ञा ने सूर्य देव के दो पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम अश्विनी कुमार रखा गया । अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य कहलाते हैं ।
अश्विनी कुमार |
सूर्य देव और देवी संज्ञा का पुनर्मिलन
अपने पिता द्वारा सूर्य देव के तेज को नियंत्रित करने के कारण देवी संज्ञा बहुत प्रसन्न हुई और वह सूर्य देव के साथ सूर्य लोक को चली गई । वहां पर देवी संज्ञा ने रेमनतक नामक पुत्र को जन्म दियाा । रेमनतक, सूर्य देव के साथ रहते हैं और उनके साथ ही सारे संसार को प्रकाशित करते हैं ।
देवी संज्ञा, सूर्य देव और देवी छाया |
ऋषिवर वाल्मीकि द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ रामायण के महाराज सुग्रीव और महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ग्रंथ महाभारत के कुंती पुत्र दानवीर कर्ण भी भगवान सूर्य के अंश से उत्पन्न हुए थे ।
!!!आज भी सूर्य देव और उनका परिवार संसार के कल्याण के लिए तत्पर है और अपने कर्तव्य का पूरी निष्ठा से पालन करते है !!!
।। इति श्री।।
Source of images:
Also Read:
Comments
Post a Comment