गंगा नदी की कथा

गंगा नदी 


परम पवित्र नदी गंगा भारत की प्रमुख नदी है ।  यह गंगोत्री के गोमुख से निकल कर भारत के अनेक राज्यों को पवित्र करती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरकर, सागर में मिल जाती है । इस पतित पावनि नदी की कथा बहुत ही मनोहारी है जो कहने और सुनने वाले के मन को आत्मविभोर कर देती है । 

गौमुख
गौमुख 

उत्पत्ति की कथा  

मुख्यत: शिव पुराण और श्री मद्धभागवत पुराण में गंगा नदी के जन्म के अलग अलग प्रसंग आते हैंं । 

शिव पुराण की कथा 

हिमालयराज और उनकी पत्नी मैना देवी की दो पुत्रिया गंगा तथा पार्वती, जो प्रभावशाली और दैविये गुणों से संपन्न थी । पार्वती ने कठोर तप करके शिव को वर रूप में प्राप्त किया और दूसरी ओर गंगा स्वछंद थीं और किसी बंधन को न मानकर मनमाने मार्ग का अनुसरण करती थी । गंगा की असाधारण प्रतिभा से प्रसन्न होकर देवता संसार के कल्याण के लिए उनको हिमालय राज से मांगकर स्वर्ग ले गए और वह स्वर्ग में विचरण करने लगी ।  

श्री मद्धभागवत की कथा 

इस कथा के अनुसार जब भगवान वामन ने तीन पग धरती राजा बलि से मांगी तो उन्होंने जब अपना पहला पग उठाया तो सारी पृथ्वी और ब्रह्माण्ड को नाप लिया ।  इसी दौरान उनका पग हिमालय की चोटी से टकराया और वहाँ से एक जलधारा निकली जो ब्रह्मा जी के कमण्डल मे समाहित हो गयी । फिर गंगा नदी स्वर्ग में विचरण करने लगी ।

गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की कथा 

भगवन राम के ही वंश में उनसे कई पीढ़िओ पहले एक परम प्रतापी राजा सगर हुए उनकी दो पत्नियाँ थी । बड़ी रानी केशनी जो विधर्भ के राजा की पुत्री थी ।  वह सुन्दर, धर्मात्मा तथा सत्यपरायण थी। उनकी दूसरी रानी सुमति थी, जो राजा अरिष्टनेमि की कन्या थी । परन्तु राजा सगर की कोई सन्तान   नहीं थी ।  

सगर का पुत्र प्राप्ति के लिए तप करना 

पुत्र प्राप्ति के लिए महाराज सगर, रानियों के साथ हिमालय में जाकर तप करने लगेे । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महर्षि भृगु ने वरदान दिया की उनकी दोनों रानियों में से एक से ६०,००० पुत्र होंगे और दूसरी से एक ही पुत्र होगा, जो वंश को बड़ाएगा । महर्षि ने राजा को कहा कि आप ही निश्चित कर लीजिए की कोन सी रानी एक पुत्र को जन्म देगी और कोन सी ६०,००० को । 

तब बड़ी रानी केशनी ने वंश को बढ़ाने वाले एक पुत्र की माँ बनना स्वीकार किया । समय आने पर रानी केशनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम था असमंजस। वह बड़ा ही क्रूर था । उससे लोगो को मारने में मज़ा आता था । राजा ने उसकी शादी भी कर दी पर वो नहीं सुधरा । उसके पुत्र का नाम अंशुमान था । वह बड़ा ही सरल हृदयी और भगवान् को मानने वाला था । 

दूसरी ओर रानी सुमति के गर्भ से एक तुमभी के अकार का भ्रूण निकला, जिसके ६०,००० टुकड़े किये गए । उन सब भ्रूणों को घी के घड़े में रखकर विकसित किया गया । ( जैसे आजकल परखनली शिशु होते हैं वैसे उनका जन्म हुआ ) राजा सगर के ६०,००० पुत्र परम बलवान योद्धा थे । परन्तु उन्हें घमंड भी बहुत था । उन्होंने समस्त पृथ्वी जीतने के लिए राजा सगर को अश्वमेघ यज्ञ करने की सलाह दी । समय आने पर ऋषिगणों की आज्ञा से राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ  किया । 

कपिल मुनि का सगर के पुत्रों को श्राप देना 

उनके ६०,००० प्रतापी पुत्र अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े के पीछे - पीछे चले ,जहा- जहा वह घोडा विचरण करता था वहाँ- वहाँ की पृथ्वी राजा सगर की हो जाती ।  यह देखकर स्वर्ग के राजा इंद्र को भय हुआ कि अश्वमेघ यज्ञ करने के बाद राजा सगर अपने पुत्रो के साथ स्वर्ग पर न आक्रमण कर दे ।  इंद्र ने माया से यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसको कपिल मुनि के आश्रम में छुपा दियाा । 

यज्ञ का घोड़ा न पाकर राजा सागर के पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए । उस समय कपिल मुनि ध्यानमग्न थे।  राजा सगर से पुत्रो ने सोचा की , कपिल मुनि ने ही उनका घोड़ा चुराया है और वह कपिल मुनि को कटु वाक्य कहने लगे।इससे कपिल मुनि बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने उन सगर पुत्रो को श्राप देकर भस्म कर दिया ।

अंशुमान का कपिल मुनि से संवाद  

यह समाचार जब राजा सगर तक पहुंचा तो उन्होंने अंशुमान को कपिल मुनि के आश्रम मैं भेजा । वंहा अंशुमान जी ने अपने 60, 000 भाइयों को भस्मीभूत हुए देखा तो वह बहुत दुखी हुए। कपिल मुनि की क्रोधाग्नि मैं भस्म होने के कारण वे सब प्रेत योनि को प्राप्त हुए थे । 

जब अंशुमान जी ने कपिल मुनि से उनकी मुक्ति का उपाय पूछा तो कपिल मुनि ने बताया कि वे सब साधारण अग्नि से भस्म नहीं हुए है । वे मेरी क्रोधाग्नि से भस्म हुए है इसलिए वो सब साधारण जल से मुक्त नहीं हो सकतेे । कपिल मुनि ने बताया अगर स्वर्ग से माँ गंगा पृथ्वी पर आ जाए तो ही उनकी मुक्ति सम्भव है । यह सुनकर बहुत ही दुखी मन से अंशुमान जी वापस अयोध्या आ गये । समय आने पर राजा सगर, अंशुमान को राजगद्दी दे कर वन को चले गए ।

अंशुमान का ब्रह्मदेव की तपस्या करना 

अंशुमान बहुत ही धर्मात्मा राजा थे, उनका एक बहुत ही प्रतापी पुत्र दिलीप हुआ । समय आने पर दिलिप को राजगद्दी दे कर अंशुमान जी, गंगा के पृथ्वी अवतरण के लिए ब्रह्मा जी के तप को चले गए । उन्होंने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करी परन्तु ब्रह्मा जी प्रसन्न नहीं हुए । तपस्या करते हुए अंशुमान जी मृत्यु को प्राप्त हुए और स्वर्ग सिधार गए । 

दिलिप का ब्रह्मदेव की तपस्या करना 

अंशुमान जी के बाद उनके पुत्र दिलिप अपने पुत्र भगीरथी को राजगद्दी दे कर ब्रह्मा जी की तपस्या को चले गए । उन्होंने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की परंतु ब्रह्मा जी प्रसन्न नहीं हुए और दिलिप जी भी ब्रह्मा जी की तपस्या करते- करते स्वर्ग सिधार गए ।      

भागीरथी का  ब्रह्मदेव की तपस्या करना              

राजा भगीरथ बड़े प्रतापी नरेश थे, उन्होने हिमालय जा कर ब्रम्हा जी की अति कठोर तपस्या आरंभ कर दी । वे एक टांग पर खड़े हो कर सिर्फ वायु का भक्षण करते हुए ब्रह्मा जी का कठोर तप करते रहेे । उन्होंने कई वर्षो तक ब्रह्मा जी की साधना की ।  

बह्मा जी ने प्रसन्न हो कर भगीरथ जी को दर्शन दिए और वर माँगने को कहा । भगीरथ जी ने राजा सगर के 60, 000 पुत्रों की मुक्ति के लिए गंगा माँ की पृथ्वी पर अवतार लेने की प्रार्थना की। तब ब्रह्मा जी ने कहा, गंगा पृथ्वी पर तो आ सकती है परन्तु पृथ्वी उसका वेग नहीं सह सकतीं, केवल महादेव ही गंगा का वेग अपने मस्तक पर धारण कर सकते है । इसलिए महादेव को प्रसन्न करो । 

भागीरथी का महादेव की तपस्या करना 

भगीरथ जी ने महादेव की बहुत कठोर तपस्या आरंभ कर दी । वे निराहार रह कर, अपने पैर के अंगूठे पर खड़े हो कर तपस्या करने लगे । समय आने पर महादेव प्रसन्न हुए उन्होंने भगीरथ को दर्शन दिये और कहा कि, वे गंगा का वेग अपने मस्तक पर धारण करने को तैयार है । 

शिव जी की जटाओं से बहती देवी गंगा
शिव जी की जटाओं से बहती देवी गंगा 

देवी गंगा का पृथ्वी पर अवतरण 

गंगा नदी अपने संपूर्ण वेग के साथ पृथ्वी की और बड़ी तब महादेव ने गंगा के संपूर्ण जल को अपनी जटाओं मे समाहित कर लिया । गंगा जी बहुत कोशिश करने के बाद भी महादेव की जटाओं से छूट नहीं पाई ।

भागीरथ जी ने आशुतोष शिव की फिर तपस्या की । महादेव जी ने प्रसन्न हो कर गंगा जी को हिमालय के बिन्दुसर में छोड़ दिया ।
 
देवी गंगा और राजा भागीरथ
देवी गंगा और राजा भागीरथ
       
शिव की जटाओं में से निकलकर गंगा जी 7 धाराओं में प्रवाहित हुई । जिसमें 3 धराएं हलादिनी, पाविनी और नलिनी यह धाराएं पूर्व की ओर प्रवाहित हुई तथा सुचकशु, सीता और सिंधु पश्चिम की ओर प्रवाहित हुई । अंतिम धारा भागीरथी के नाम से विख्यात हुई और भागीरथ जी के पीछे सगर के 60,000 पुत्रों के उद्धार को चली । 
 
देवी गंगा
देवी गंगा 
राजा भगीरथ जहां - जहां जाते गंगा जी उनके पीछे चलती रही । रास्ते में देवता और ऋषिगण गंगा माँ की स्तुति और पूजन करते रहे । अपने प्रचंड वेग से बहते हुए गंगा जी जब ऋषि जग़म के आश्रम के पास आई तो अपने वेग से उनकी कुटिया और यज्ञशाला तबाह कर दी । तब ऋषि क्रोधित हो कर भगीरथी की सारी जलधारा पीं गए । परंतु ऋषिओ की स्तुति करने के बाद उन्होंने गंगा जी को अपने कानो से निकाल दिया और गंगा जी को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया । इसलिए गंगा का एक नाम जाह्नवी भी है। 

सगर के पुत्रों का उद्धार 

गंगा जी राजा भगीरथ के पीछे बहते हुए जहाँ- जहाँ से निकली वहाँ अनेक तीर्थ बन गए और अंत में मैं उस जगह पहुची, जहां सगर के 60, 000 पुत्र भस्म हुए थे । माँ गंगा के स्पर्श से वो प्रेत योनि से मुक्त हो कर स्वर्ग को प्राप्त हुए ।
 
जिस जगह सागर के 60, 000 पुत्र मुक्त हुए, वो स्थान पश्चिम बंगाल के गंगा सागर मैं स्थित है, जहां आज भी हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन मेला लगता है और वहीं पर आगे जा कर माँ गंगा, सागर से मिलती है । 


गंगा से सम्भंदित और जानकारी के लिए यहाँ देखे - 

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