गंगा नदी का महत्व तथा उसपर किए गए शोध

 गंगा नदी का महत्व

गंगा नदी भारत की पवित्र नदी है यह हिमालय के गौमुख से निकलकर 2525 km बहते हुए बंगाल की खाड़ी मैं गिरकर सागर मैं मिल जाती है। यह पवित्र नदी सदियो से भारत की आस्था का केंद्र है। अनेक ऋषियों, देवताओ और मनुष्यों ने हर काल मे इसके तट पर तपस्या की है । यह नदी हिमालय के उस प्रदेश से निकलती है, जिसे तपोवन कहा गया है। इस नदी मैं    अनेक दैवीय गुण समाहित हैं, दूसरी ओर जब यह पवित्र नदी हिमालय मे बहती है तो पहाड़ों से होते हुए अनेक जड़ी-बुटीयों का रस समाहित करती हुई चलती है। सदियों से इनके तटों पर सामूहिक मंत्र उच्चारण और पूजन के कारण यह और भी पवित्र हो गई है, जिसे आज विज्ञान भी मानता है ।



गंगा नदी का जल कभी खराब नहीं होता। सदियों से लोग इनका जल अपने घर ले जाते रहे हैं और पवित्र कार्यो मे इस जल का ईस्तेमाल होता रहा है। भारतीय मान्यता के अनुसार यदि गंगा जल मे तुलसी मिला दी जाये तो यह अमृत बन जाता है।

    
  गंगा नदी पर किए गए वैज्ञानिक शोध 

1896 मे ई. हेनरी हैकिंग नाम के ब्रिटिश वैज्ञानिक ने शोध किया, उसने एक पात्र में हैजा का पानी लिया और उसे साफ़ पानी मे डाला । उसने देखा, कि उस पानी मैं कीटाणु 2-3 दिन तक जिवित रहे, जबकि इस हैजा के पानी को जब गंगा के जल मे डाला गया, तो यह 3 घंटे मे नष्ट हो गए ।

1927 में फ्रांस के वैज्ञानिकों ने गंगा में बहती हुई लाशों पर  जब शोध किया तो वो हैरान रह गए। उनके अनुसार लाशों के नीचे पानी में लाखों की संख्या में कीटाणु होने चाहिए थे, परन्तु वहा एक भी कीटाणु नहीं मिला ।

उन्होंने जब इस तथ्य की खोज की तो पाया, गंगा जल मे bacteriophase नामक एक विषाणु पाया जाता है, जो कीटाणुओं को नष्ट कर देता है । इस वज़ह से इसका जल और नदियों के मुकाबले कभी खराब नहीं होता ।

गंगा जल मे प्राण वायु (oxygen) की मात्रा और नदियों के मुकाबले 13% अधिक है । यह भी वैज्ञानिक शोधों से प्रमाणित हो चुका है ।


अतः इसे कोई इंकार नहीं कर सकता कि गंगा नदी संसार की सबसे पवित्र नदी है । 



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