भगवान विष्णु के पंचम अवतार भगवान कपिल की कथा तथा ऋषि कर्दम एवं देवी देवहूति का चरित्र

भगवान कपिल मुनि की कथा

संसार के पालनहार श्री हरि विष्णु संसार की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं । समय-समय पर अनेक अवतार लेकर भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर धर्म की रक्षा की है और पुनः धर्म की स्थापना के लिए उचित दिशा प्रदान की है ।

श्री हरि
श्री हरि विष्णु 

सतयुग मे श्री हरि ने भगवान कपिल के रूप मे जन्म लेकर अपनी माता के संशय को दूर किया था और संसार को सांख्य ज्ञान प्रदान किया था । पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कंध के चौबीसवे अध्याय मे भगवान विष्णु के पंचम अवतार भगवान कपिल की दिव्य कथा का वर्णन किया गया है । 

भगवान कपिल के जन्म की कथा 

परम पिता ब्रह्मा जी सृष्टि का सृजन कर चुके थे एवं सृष्टि का कार्य चलाने के लिए उन्होंने कई मानसिक पुत्रों को उत्पन्न किया था परंतु वह सभी देवर्षि नारद के उपदेशों के द्वारा तपस्या के मार्ग पर चले गए और उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । तब ब्रह्माजी ने अपने मन से ऋषि कर्दम को उत्पन्न किया और उन्हें आज्ञा दी कि वह सन्तान उत्पन्न करें ।

परम पिता ब्रह्मा
परम पिता ब्रह्मा 

ऋषि कर्दम का भगवान विष्णु की तपस्या करना 

अपने मन मे अनेक प्रश्न लिए ऋषि कर्दम पृथ्वी लोक आ गए और विचार करने लगे की उनका विवाह कैसे होगा और कोन उन्हें अपनी कन्या प्रदान करेगा?  य़ह विचार कर उन्होंने सरस्वती नदी के तट पर भगवान विष्णु की तपस्या करने का निश्चय किया ।

ऋषि कर्दम
ऋषि कर्दम 

उन्होंने दस हजार वर्षो तक भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें अपने दिव्य चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन दिए और कहां कि हे विप्रवर, आप के मन की बात जानकर मै पहले ही इसकी व्यवस्था कर चुका हू, आज से दो दिन के पश्चात स्वयंभुव मनु अपनी पत्नी शतरूपा के साथ आप के आश्रम मे आयेगे और अपनी पुत्री देवहूति के विवाह का प्रस्ताव आप के समक्ष रखेगें । आप इस आमंत्रण को स्वीकर कर लेना । 

प्रथम आपकी पत्नी देवहूति के गर्भ से नौ दिव्य कन्याओं का जन्म होगा जो सृष्टि के विस्तार मे सहायक होगी और उसके उपरांत मैं स्वयं आपकी पत्नी के गर्भ से उत्पन्न होकर संसार मे सांख्य योग को प्रकट करूगा ।

ऋषि कर्दम और देवी देवहूति का विवाह 

दो दिन के पश्चात स्वयंभुव मनु अपनी पत्नी और पुत्री के साथ आश्रम पधारे । उन्होंने अपनी पुत्री देवी देवहूति के विवाह का  प्रस्ताव ऋषि कर्दम के समक्ष रखा, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया । ऋषि कर्दम और देवी देवहूति का विवाह अत्यंत धूमधाम से संपन्न हुआ । 

ऋषि कर्दम और देवी देवहूति का विवाह
ऋषि कर्दम और देवी देवहूति का विवाह 

देवी देवहूति एक पति - परायण स्त्री थी, उन्होंने ऋषि कर्दम की अनेक वर्षो तक पूर्ण निष्ठा से सेवा की और अपने लिए कोई इच्छा व्यक्त नहीं की । देवी देवहूति के आचरण से ऋषि कर्दम अत्यंत प्रसन्न थे ।

ऋषि कर्दम और देवी देवहूति
ऋषि कर्दम और देवी देवहूति 

ऋषि कर्दम द्वारा दिव्य विमान का निर्माण 

ऋषि कर्दम ने देवी देवहुति के मन के भाव को जान लिया था, उन्होंने अपनी तपस्या की शक्ति से उनके लिए दिव्य विमान का निर्माण किया । तदुपरांत उन्होने देवी देवहूति को बिंदु सरोवर में स्नान करने को कहां । जब देवी देवहूति बिंदु सरोवर में स्नान के लिए गई तो अनेक सुंदरियां उनकी सेवा मे प्रस्तुत हो गई और उन्होने स्वच्छ और सुगंधित जल से उन्हें स्नान कराया और दिव्य वस्त्र प्रदान किए । उन सुंदरियों ने देवी देवहूति का नख से लेकर शिखा तक अत्यंत सुंदर श्रृंगार किया और उन्हें सरोवर से बाहर लेकर आयी ।

सुन्दरियां, देवी देवहूति का श्रृंगार करते हुए
सुन्दरियां, देवी देवहूति का श्रृंगार करते हुए 

देवी देवहूति द्वारा नौ कन्याओं का जन्म 

देवी देवहूति के रूप को देखकर ऋषि कर्दम का मन चलायमान हो गया । उन्होंने देवी को दिव्य विमान मे बैठने की आज्ञा दी । उस दिव्य विमान मे ऋषि कर्दम देवी देवहूति के साथ कई वर्षो तक अनेक लोको मे भ्रमण करते रहे ।

ऋषि कर्दम और देवी देवहूति दिव्य विमान में प्रवेश करते हुए
ऋषि कर्दम और देवी देवहूति दिव्य विमान में प्रवेश करते हुए 

उस समय उन्होंने देवी देवहूति की प्रत्येक इच्छा को पूर्ण किया । उस विमान मे संसार का भ्रमण करते हुए देवी देवहूति ने नौ कन्याओं को एक साथ जन्म दिया । इसके उपरांत वह युगल पुनः आश्रम आ गए ।

आश्रम आकर ऋषि कर्दम ने कहां की सन्तान प्राप्ति का उद्देशय पूर्ण हो चुका है अतः वे दीर्धकालिक तपस्या के लिए जाना चाहते है । देवी देवहूति ने ऋषि कर्दम से विनती की और कहां की इन कन्याओं के विवाह के उपरांत आप सन्यास ग्रहण कर लेना । विधाता की इच्छा जानकर ऋषि कर्दम ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया ।

ऋषि कर्दम अपने आश्रम मे ग्रहस्थ धर्म का पालन करने लगे । समय आने पर देवी देवहूति पुनः गर्भवती हुई । संसार के पालनहार के गर्भ मे आने से सम्पूर्ण सृष्टि आनंदित हो उठी । सृष्टि मे शुभ शगुन दृष्टिगोचर होने लगे । परम पिता ब्रह्मा, नारद जी और मारीच आदि ऋषियों के साथ ऋषि कर्दम और देवी देवहूति को आशीर्वाद देने के लिए पधारे ।

ब्रह्मदेव, ऋषि कर्दम और देवी देवहूति को आशीर्वाद देते हुए
ब्रह्मदेव, ऋषि कर्दम और देवी देवहूति को आशीर्वाद देते हुए 

ब्रह्मा जी ने ऋषि कर्दम की विवाह योग्य कन्याओं के लिए अपने नौ मानस पुत्रों के नाम सुझाए । ऋषि कर्दम, ब्रह्मा जी के सुझाव से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी की अनेक प्रकार से स्तुति की । उन दोनों को अनेक आशीर्वाद देकर ब्रह्मा जी ब्रह्मलोक चले गए ।

ऋषि कर्दम की नौ पुत्रियों का विवाह  

परम पिता ब्रह्मा की आज्ञा के अनुसार ऋषि कर्दम ने अपनी पुत्री देवी कलह का विवाह ऋषि मारीच से, देवी अनुसूया का विवाह ऋषि अत्रि से, देवी श्रद्धा का विवाह ऋषि अंगिरा, देवी हर्विभू का विवाह ऋषि पुलस्त्य से, देवी गति का ऋषि पुलह से, देवी क्रिया का ऋषि कृतु से, देवी ख्याति का ऋषि भृगु से, देवी अरुंधति का ऋषि वसिष्ठ से, और देवी शांति का विवाह ऋषि अथर्व से कर दिया । ऋषि कर्दम और देवी देवहूति ने अपनी पुत्रियों को अनेक आशीर्वाद देकर विदा किया ।

भगवान कपिल का जन्म 

समय आने पर देवी देवहूति ने संसार के पालनहार भगवान विष्णु के अवतार भगवान कपिल को जन्म दिया ।  भगवान के जन्म से सम्पूर्ण सृष्टि आनंदित हो उठी । देवताओं ने आसमान से पुष्पों की वर्षा की । सभी देवी - देवता भगवान के दर्शन के लिए पधारे ।

उनके जाने के उपरांत एकांत मे ऋषि कर्दम ने प्रभु की चरण वंदना की और उनकी अनेक प्रकार से स्तुति की । भगवान कपिल की परिक्रमा कर ऋषि कर्दम ने सन्यास ग्रहण कर लिया वन मे तपस्या को चले गए ।

संसार के समक्ष सांख्य योग प्रकट करना 

बालक कपिल का लालन - पालन आश्रम में हुआ । वह बालपन से ही तपस्या में लीन रहते थे । धीरे - धीरे समय बीतता गया, बालक कपिल की किशोर अवस्था आने पर उनकी माता देवी देवहूति बोली, मेरे पति ने मुझे बताया था की आप भगवान विष्णु के अवतार है, आप ने संसार के उद्धार के लिए ही जन्म लिया है । हे पुत्र कपिल, मेरा मन सांसारिक माया से ऊब चुका है और मैं मोक्ष के मार्ग पर जाना चाहती हू अतः आप कृपया कर मेरा मार्ग दर्शन कीजिए? 

कपिल बोले, हे माता, मेरा तो जन्म ही आत्मज्ञान प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का मार्गदर्शन करने के लिए हुआ है । हे माता, मनुष्य जन्म अत्यंत दुर्लभ है और इसका मुख्य उद्देशय परमात्मा को प्राप्त करना है । अतः व्यक्ति को अपने मन को संयमित रखकर प्रभु का ध्यान करना चाहिए । माता, यह मन ही जीव के मोक्ष और बन्धन का कारक है । जब यह मन विषयों के आधीन हो जाता है तो बन्धन कारक है और जब यह परमात्मा मे लीन हो जाता है तो मोक्ष प्राप्त करता है । माता, श्री हरि विष्णु ही इस संसार के उत्पति, पालक और संहारकर्ता है अतः जीव को उन्हीं का ध्यान करना चाहिए ।"

भगवान कपिल माता देवहूति को सांख्य ज्ञान प्रदान करते हुए
भगवान कपिल माता देवहूति को सांख्य ज्ञान प्रदान करते हुए 

भगवान कपिल ने अपनी माता को भगवान विष्णु के स्वरूप, प्राकृति और पुरुष के संबंध, और अष्टांग योग द्वारा परमात्मा को प्राप्त करने के अनेक उपदेश दिए । देवी देवहूति ने भगवान कपिल से आत्मा, परमात्मा और संसार के विषय में अनेक प्रश्न किए । भगवान कपिल ने उन सब प्रश्नों का तर्क सहित उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया था । भगवान कपिल द्वारा अपनी माता देवहूति को दिए गए यह तार्किक उपदेश सांख्य योग दर्शन कहलाते है ।

भगवान कपिल के दिव्य उपदेशों से देवी देवहूति के मन का भ्रम दूर हो गया, उन्हें संसार की नश्वरता का बोध हुआ । देवी देवहूति को दिव्य ज्ञान देकर और उन्हें प्रणाम कर भगवान कपिल ज़न कल्याण के लिए पूर्व दिशा की और चले गए । उनके जाने के उपरांत देवी देवहूति सरस्वती नदी के तट पर अष्टांग योग का पालन करते हुए समाधिस्थ हो गई और एक दिन प्रभु का चिंतन करते हुए उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया और मोक्ष प्राप्त किया ।

बिंदु सरोवर से जाने के पश्चात भगवान कपिल आर्याव्रत मे सांख्य ज्ञान का प्रचार करते रहे । उन्होंने आर्याव्रत मे अनेक स्थानों मे भ्रमण किया और अनेक स्थानो मे तपस्या की । वह अनेक वर्षों तक समाज में धर्म का प्रचार करते रहे ।

 जनता में सांख्य शास्त्र का प्रचार करते मुनि कपिल
जनता में सांख्य शास्त्र का प्रचार करते मुनि कपिल 

इसके उपरांत वह आर्याव्रत के पूर्वी भाग में चले गए और उन्होंने सागर के निकट अपना आश्रम बनाया । वह अनेक वर्षों तक उस आश्रम में ही रहे । 

ऋषि कपिल द्वारा राजा सगर के पुत्रों को भस्म करना 

एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया और उनके यज्ञ का घोड़ा देवराज इंद्र ने चुराकर कपिल ऋषि के आश्रम में छोड़ दिया । राजा सगर के 60, 000 पुत्र अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा ढूंढते हुए कपिल ऋषि के आश्रम में पहुंचे । राजा सगर के पुत्रों ने सोचा कि कपिल ऋषि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराकर अपने आश्रम में रख लिया है । जब राजा सगर के पुत्रों ने उनके आश्रम में प्रवेश किया, उस समय ऋषि कपिल तपस्या में लीन थे ।

उन्होंने कपिल ऋषि का अत्यंत तिरस्कार किया और उनकी तपस्या भंग कर दी, इससे क्रुद्ध होकर कपिल ऋषि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपनी क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया ।
राजा सगर के पुत्रों को भस्म करते हुए मुनि कपिल 

जब राजा सगर का पुत्र असमंजस अपने भाइयों को ढूंढता हुआ कपिल ऋषि के आश्रम में पहुंचा तो उनको भस्म हुआ देखकर अत्यंत चिंतित हो उठा । असमंजस ने ऋषि कपिल से उनकी मुक्ति का उपाय पूछा । कपिल जी बोले, सगर के 60, 000 पुत्र मेरी क्रोधाग्नि से भस्म होकर प्रेत योनि को प्राप्त हुए है अतः अगर देवी गंगा ब्रह्मलोक से धरती पर आए, तभी उनका उद्धार हो सकता है ।

दिव्य गंगासागर धाम 

राजा सगर, उनके पुत्र असमंजस, उनके पुत्र दिलीप, और विशेषकर उनके पुत्र भागीरथ के अथक प्रयत्नों के द्वारा देवी गंगा का धरती पर आगमन हुआ और उनके जल से राजा सगर के पुत्रों का उद्धार हुआ । देवी गंगा के दर्शनों से मुनि कपिल अत्यंत प्रसन्न हुए उन्होंने राजा भागीरथ की अत्यंत प्रशंसा की और उन्हें अनेक आशीर्वाद दिए ।

मुनि कपिल और राजा भागीरथ
मुनि कपिल और राजा भागीरथ

कपिल जी ने गंगा नदी की विपुल जलराशि का सागर में विलय होने से उस स्थान को गंगासागर नाम दिया । आज गंगासागर हिन्दुओ के सबसे बड़े तीर्थ के रूप मे जाना जाता है । मान्यता है की, सारे तीर्थ बार - बार, गंगा सागर एक बार अर्थात गंगासागर तीर्थ का सर्वाधिक महत्व है और जो पुण्य व्यक्ति को एक बार गंगासागर के दर्शनों से मिल जाता है उतना पुण्य अन्य तीर्थों मे अनेक बार दर्शनों के उपरांत भी नहीं मिलता । यहां देवी गंगा, भगवान कपिल और राजा भागीरथ की भव्य प्रतिमाएं स्थापित है ।

देवी गंगा, मुनि कपिल और राजा भागीरथ, गंगासागर धाम, पश्चिम बंगाल 

माना जाता है की मुनि कपिल ने अनेक वर्षो तक गंगासागर धाम मे ही निवास किया, इसके उपरांत वह देवभूमि उत्तराखंड चले गए और वहां तपस्या में लीन रहे फिर वहां से उन्होंने कुल्लू के बशोना नामक स्थान पर अपना स्थाई निवास बनाया ।

राजस्थान के बीकानेर का जिला कोलायत मुनि कपिल की जन्म स्थली के रूप मे जाना जाता है । यहां उनका भव्य मंदिर हैं और श्रद्धालू दूर - दूर से उनके दर्शनों के लिय आते है । यहां उनके श्री विग्रह के साथ महर्षि वसिष्ठ और देवी अरुंधति की प्रतिमाएं स्थापित है । यहां का कपिलकुंड मुख्य आकर्षण का केंद्र है जिसे दिव्य बिंदु सरोवर के नाम से भी जाना जाता है । 

दिव्य दर्शन श्री कपिल मुनि, ब्रह्मऋषि वशिष्ठ और देवी अरुंधति, कोलायत धाम, बीकानेर
दिव्य दर्शन श्री कपिल मुनि, ब्रह्मऋषि वशिष्ठ और देवी अरुंधति, कोलायत धाम, बीकानेर 

इसके अतिरिक्त हरियाणा के कैथल जिले में स्थित पवित्र तीर्थ कलायत भी मुनि कपिल की मुख्य तपस्थली है । माना जाता है कि यहां के दिव्य कुंड में स्नान करने से चर्म रोगो से मुक्ति मिलती है । मुनि कपिल के दिव्य चरण जहां - जहां पड़े वहां-वहा अनेक तीर्थ बन गए । उनके सभी तीर्थ स्थानो पर मकर सक्रांति एवं कार्तिक मास में भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है ।

श्री कपिल मुनि दिव्य दर्शन कलायत, कैथल, हरियाणा
श्री कपिल मुनि दिव्य दर्शन कलायत, कैथल, हरियाणा

मुनिवर कपिल द्वारा रचित सांख्य योगदर्शन संसार के प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है । जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत गीता में अर्जुन के मोह को दूर किया था उसी प्रकार महर्षि कपिल ने अपनी माता देवहूति के मोह को दूर कर उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया था ।

श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित कपिल मुनि का यह प्रसंग अध्यात्म की दृष्टि से परिपूर्ण है और जो व्यक्ति नित्य उनकी कथाओं का पाठन और श्रवण करता है वह मृत्यु के उपरांत इस भौतिक लोक को त्याग कर भगवान विष्णु का दिव्य वैकुंठ लोक प्राप्त करता है ।

श्री हरि विष्णु
श्री हरि विष्णु 

                              ।। इति श्री।।
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