शुक्राचार्य का महादेव की तपस्या करना
असुरों की पराजय हो चुकी थी और देवताओं का स्वर्ग पर अधिकार हो गया था । असुरों के साथ हुए छल को देखकर असुर गुरु शुक्राचार्य क्रोध से भर गए और संजीवनी विद्या की प्राप्ति के लिए महादेव का तप करने चले गए। संजीवनी विद्या से मृत हुए व्यक्तियों को जीवित किया जा सकता है। शुक्राचार्य की कठिन तपस्या से महादेव प्रसन्न हुए। उन्होंने शुक्राचार्य को संजीवनी विद्या का रहस्य बताया ।
शुक्राचर्य महदेव की तपस्या करते हुए |
प्रहलाद जी ने राजा बलि को दिव्य माला दी और कहा, जब तक यह माला तुम्हारे गले में रहेगी तुम्हें कोई पराजित नहीं कर पाएगा ।
देवताओं की पराजय
देवताओं और असुरों का युद्ध पुनः शुरू हो गया । देवता जिन असुरों को मारते थे शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या के बल से उन्हें दोबारा जीवित कर देते थे । यह देखकर देवसेना में हाहाकार मच गया और वह घबराकर युद्ध से भागने लगे ।
शुक्राचार्य ने राजा बलि को बताया कि अगर स्वर्ग लोक पर उसको अपना अधिकार अक्षय करना है तो उसे सौं अश्वमेध यज्ञ करने होंगे । सौंवाअश्वमेघ यज्ञ पूर्ण होते ही अनंत समय तक स्वर्ग पर तुम्हारा अधिकार हो जाएगा और इंद्र फिर कभी स्वर्ग पर अपना अधिकार नहीं कर पाएगा । शुक्राचार्य की आज्ञा से राजा बलि नेअश्वमेध यज्ञ प्रारंभ कर दिया ।
देवताओं का ब्रह्मदेव की स्तुति करना
असुरों से पराजित होकर देवता बहुत हतोत्साहित हो गए थे वे अपने पिता कश्यप जी की शरण में गए । कश्यप जी उन्हें लेकर परम पिता ब्रह्मा जी की शरण में गए । कश्यप जी और सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी की बहुत स्तुति की ।
प्रसन्न होकर ब्रह्माजी बोले, हे कश्यप तुम अपनी पत्नी देवी अदिति और अपने पुत्रों के साथ श्रीर सागर के उत्तरी तट पर जाओ और श्री हरि विष्णु की तपस्या करो । केवल श्री हरि ही इस समस्या का समाधान कर सकते हैं ।
देवताओं द्वारा श्री हरि विष्णु की तपस्या करना
देवी आदिति और कश्यप जी ने श्री हरि विष्णु की बहुत स्तुति की और उनसे कहा, हमारी इच्छा है किआप हमारे पुत्र के रूप में जन्म ले और इंद्र के छोटे भाई बनकर इंद्र को उसका अधिकार दिलवाए । श्री हरि विष्णु बोले ऐसा ही होगा ।
प्रभु वामन का जन्म
प्रभु की कृपा से देवी आदिति गर्भवती हुई और उन्होंने उस गर्भ को 100 वर्ष तक धारण किया। प्रभु श्री हरि ने देवी अदिति के गर्भ से वामन के रूप में जन्म लिया । उनके जन्म लेते ही देवताओं को अच्छे शगुन दिखाई देने लगे । सभी देवता वामन भगवान के दर्शन करने को आए ।
भगवान वामन के जन्म की खुशी में अप्सराओं ने नृत्य किया । जन्म लेते ही प्रभु वामन बोने के रूप में परिवर्तित हो गए । उन्होंने देवगुरु बृहस्पति को अपने साथ राजा बलि की यज्ञशाला में चलने की आज्ञा दी ।
प्रभु वामन का बलि की यज्ञ शाला मैं आगमन
राजा बलि अब तक 99 यज्ञ पूर्ण करके सौंवा अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे । भगवान वामन, देव गुरु ब्रहस्पति के साथ राजा बलि की यज्ञशाला में पहुंचे । वहां पर उपस्थित सभी ऋषिगणों ने भगवान का वामन रूप देखकर उनकी बहुत हंसी उड़ाई परंतु शीघ्र ही भगवान वामन ने सभी ऋषिगणों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया ।
प्रभु वामन का बलि से तीन पग भूमि माँगना
वामन देव राजा बलि के पास पहुंचे और उनसे भिक्षा की प्रार्थना करने लगे । राजा बलि बोले, हे विप्रवर "मांगो क्या मांगते हो"। वामन देव ने कहा, "उन्हें अपने गुरु की कुटिया के लिए केवल तीन पग भूमि दान में चाहिए" । यह सुनकर राजा बलि बहुत हंसा और बोला " केवल तीन पग भूमि"। राजा बलि बोला हे ब्राह्मण, अगर आप मांगो तो मैं आपको पूरी पृथ्वी दान में दे सकता हूं परंतु आप "केवल तीन पग भूमि" दान में चाहते हो । वामन देव राजा बलि से बोले, यदि आप मुझे तीन पग भूमि देने का प्रण करें तभी मैं आप का दान स्वीकार करूंगा ।
उन दोनों का वार्तालाप सुनकर शुक्राचार्य, राजा बलि से बोले की है बलि, तुम दान देने का प्रण मत करना । मैं इस ब्राह्मण को पहचान रहा हूं यह ब्राह्मण के वेश में विष्णु है जो हमारा सारा वैभव लेने आया है ।
बलि, शुक्राचार्य से बोले इससे बड़ा हमारा सौभाग्य क्या हो सकता है, जो जगत के पालक हैं, जिन में सारा जग समाया हुआ है वही पालनहार विष्णु हमारे दर पर याचक बनकर आए हैं । यह कहकर राजा बलि ने कमंडल से जल लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया परंतु शुक्राचार्य उस कमंडल में प्रविष्ट हो गए और जल को बाहर आने से रोक दिया । वामन देव ने तिनके की सहायता से कमंडल की नली खोल दी, परंतु तिनके के प्रहार से शुक्राचार्य की आंख फूट गई । इससे शुक्राचार्य क्रोधित होकर यज्ञशाला से चले गए ।
राजा बलि का प्रभु वामन को दान देने का प्रण करना
राजा बलि ने जल का आचमन करके वामन देव को तीन पग भूमि दान देने का निश्चय किया । भगवान वामन ने अपने शरीर को बढ़ाना शुरू किया और शीघ्र ही उनका स्वरूप पूरे ब्रह्मांड में दृष्टिगोचर होने लगा । प्रथम पग बढ़ाने पर वामन देव ने पूरी पृथ्वी नाप ली । जब वामन देव जी ने संपूर्ण ब्रह्मांड को नापने के लिए अपना दूसरा पग बढ़ाया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल के जल से उनके चरण को धोया और उनकी बहुत स्तुति की । दो पग में ही संपूर्ण ब्रह्मांड नापने के उपरांत वामन देव बोले, हे राजा बलि, मैं अपना तीसरा पग कहां रखूं ।
तब राजा बलि बड़े हर्ष से बोले, हे कमलनयन, "आप तीसरा पग मेरे मस्तक पर रखें" । वामन देव अपना तीसरा पग राजा बलि के मस्तक पर रखते हुए बोले, "हे राजन मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, मेरे चरण के प्रहार से तुम रसातल में चले जाओगे और मेरी आज्ञा से वहीं पर जीवन व्यतीत करोगे । "हे राजन कोई वर मांगो मैं तुम्हारी मंशा को अवश्य पूर्ण करूंगा"।
राजा बलि बोले, मैं जगत के पालक को दान देकर उनसे कुछ मांग नहीं सकता परंतु मेरी एक इच्छा है कि रसातल में महल के बाहर आप मेरी रक्षा करे । मैं जहां भी देखू वहा आप मुझे दिखाई पड़े । वामन देव बोले ऐसा ही होगा ।
वामन देव, इंद्र को स्वर्ग का राज्य दे कर राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए । पातााल लोक में वामन देव अपने विष्णु स्वरूप में आ गए और बलि का द्वारपाल बनकर वहीं ठहर गए । पालनहार विष्णु को श्रीर सागर में ना पाकर संसार का सारा कार्यकाल रुक गया ।
देवी लक्ष्मी, बलि के पास गई । देवी लक्ष्मी ने बलि को अपना भाई स्वीकार किया और उनसे अपने पति को मांगा । बलि बोले, हे बहन लक्ष्मी, अगर आप अपने पति को यहां से ले जाएंगी तो मेरी रक्षा यहां पाताल लोक में कौन करेगा ?
रक्षाबंधन की कथा
श्री हरि बोले हे बलि, मैं तुमसे अत्याधिक प्रसन्न हूं तुम चिरकाल तक पाताल लोक में ही रहोगे और यह मन्वंतर समाप्त होने के बाद अगले मन्वंतर में देवराज इंद्र का पद ग्रहण करोगे । यह कहकर श्री हरि विष्णु, देवी लक्ष्मी के साथ श्रीर सागर को चले गए ।
इति श्रीं
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