राजा शान्तनु तथा गंगा का विवाह
राजा शांतनु चंद्र वंश के परम प्रतापी नरेश थेे। वह चक्रवर्ती सम्राट भरत, जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा, की 14 वी पीढ़ी मैं हुए थे। वह बहुत ही उत्तम कोटि के नरेश थे। प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। उनको एक ऋषि से वरदान मिला था कि वह जिस रोगी के सिर पर भी हाथ रख दे तो उसका रोग ठीक हो जाएगा इसलिए उनके यहां रोगियों का तांता लगा रहता था ।पुराणों में राजा शांतनु को सागर का अवतार भी माना गया है। राजा शांतनु को शिकार खेलने का बहुत शौक था, एक बार वह गंगा के किनारे शिकार कर रहे थे और उनको बहुत प्यास लगी वह पानी पीने गंगा नदी के किनारे गए। महाराजा शांतनु ने देखा की गंगा में अति सुंदर युवती निकली, जिसे देख कर राजा शांतनु उस पर मोहित हो गए। राजा के पूछने पर उसने बताया कि वह गंगा है। राजा शांतनु ने गंगा को विवाह का निमंत्रण दिया। गंगा ने कहा वह उनसे विवाह तो कर सकती है परंतु उसकी एक शर्त हैै, उसने कहा कि आपको मुझे एक वचन देना होगा ।
गंगा ने कहा कि मैं आपसे विवाह तो करूंगी परंतु विवाह के उपरांत में जो भी करूंआप मुझसे कोई प्रश्न नहीं करोगे। अगर आप प्रश्न करोगे तो मैं आपको छोड़ कर चली जाऊंगी। राजा ने उस समय बिना सोचे समझे गंगा को यह वचन दे दिया । शांतनु और गंगा का विवाह हो गया।
गंगा का शांतनु को वसुओं का रहस्य बताना
विवाह के उपरांत राजा शांतनु बहुत खुश थे। समय आने पर गंगा गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म देने के अगले ही दिन गंगा ने गंगा नदी में ही डुबोकर पुत्र को मार दिया। यह देखकर राजा बहुत दुखी हुए परंतु वचन के अनुसार उन्होंने गंगा से कुछ नहीं पूछा । इसी प्रकार गंगा ने राजा शांतनु के सात पुत्रों को नदी में डुबोकर मार दिया।
समय आने पर गंगा ने राजा शांतनु के आठवें पुत्र को जन्म दिया और उसे भी लेकर नदी में डुबोने के लिए चल दी। परंतु इस बार राजा ने गंगा को रोक लिया। उन्होंने पूछा, तुम किस लिए ऐसा करती हो? गंगा बोलीं, वचन के अनुसार मैं अब आप को छोड़कर चली जाऊंगी, परंतु मैं आपको इसका रहस्य बताती हूं।.आपका यह पुत्र लंबी उम्र प्राप्त करेगा । परंतु इसका का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण होगा। मैं अभी तो इसे ले जाऊंगी और सभी विद्याओ में पारंगत कर इसे आपको सौप दूंगी।
गंगा ने कहा सुनो राजन, ये सब तो पिछले जन्म में वसु थे। यह वसु अपनी स्त्रियों के साथ पिछले जन्म में पृथ्वी पर बिहार करने के लिए आए थे। यह लोग महात्मा वशिष्ठ के आश्रम में भी गए और उनकी आवभगत से बहुत प्रसन्न हुए थे। महर्षि वशिष्ठ के पास एक गाय थी जिसका नाम नंदनी था। उसी की कृपा से महर्षि ने इनका इतना आदर सत्कार किया था।
उन वसुओं में एक प्रभास नाम का वसु था जिसकी पत्नी ने नंदिनी गाय को प्राप्त करने की इच्छा जताई थी। पत्नी की बातों में आकर प्रभास ने महर्षि वशिष्ठ की गाय चुराने की चेष्टा की, जिसका पता महर्षि को चल गया और उन्होंने इन सभी वसुओ को श्राप दिया कि, तुम लोग दिव्य आत्मा होकर पृथ्वी के मनुष्य जैसा आचार करते हो इसलिए तुम्हें मनुष्य का जन्म लेना होगा और पृथ्वीलोक के सभी नियमों को मानना होगा।
इस श्राप को पाने के बाद वसुओ ने गंगा नदी से प्रार्थना की कि जब वह लोग पृथ्वी पर जन्म ले तो गंगा उनकी मां बने और उनको जल्द से जल्द मुक्त कर दे। गंगा ने कहा, की इन वसुओ की मुक्ति के उद्देश्य से ही इनका अंत किया है। परंतु यहआठवां वसु प्रभास ही है जो देवव्रत के नाम से प्रसिद्ध होगा। यह कह कर गंगा चलीं गई। गंगा ने देवव्रत को सभी विधाओ मैं पारंगत कर के उसे महाराज शांतनु को सौप दिया ।
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