प्रद्युम्न के जन्म और शंबरासुर वध की कथा



पुराणों में पुनर्जन्म की अनेक कथाएं हैं, उनमें से एक कथा कामदेव की है, जिन्होंने अपने निश्चल प्रेम को प्राप्त करने के लिए श्री कृष्ण और देवी रुक्मणी के पुत्र, प्रद्युम्न के रूप मै दूसरा जन्म लिया था ।

Kaam Dev and Devi Rati
कामदेव और देवी रति 

कामदेव और रति का महादेव की तपस्या भंग करने का प्रयास करना 

पृथ्वी पर असुरों का अत्याचार बहुत बढ़ चुका था । राक्षस राज तारकासुर के अत्याचारों से सारा संसार आहत हो रहा था । तारकासुर ने परम पिता ब्रह्मा जी की तपस्या करके यह वर प्राप्त किया था कि शिव का पुत्र ही उसका वध कर सकेे । परंतु शिव तो अनंत तपस्या में लीन थे । देवराज इंद्र ने कामदेव और रति को शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा ।

Lord Shiva
भगवान शिव 

कामदेव ने अपने काम बाणों और देवी रति ने अपने नृत्य से ऐसा वातावरण बनाया जिससे समस्त संसार काम के आधीन हो गया । परंतु फिर भी वह दोनों भगवान शिव की तपस्या ना भंग कर सके । तब कामदेव ने अपना काम बाण भगवान शिव पर छोड़ा ।
          
काम बाण लगते ही भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया । उनके नेत्र से एक अत्यंत भयानक अग्नि प्रकट हुई जिसने कामदेव को भस्म कर दिया ।

कामदेव को भस्म करते हुए महादेव 

कामदेव के भस्म होते ही देवी रति अत्याधिक घबरा गई । वह भगवान शिव की शरण में गई और उसने कामदेव को पुनः जीवित करने की विनती की । देवी रति की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव बोले, जब भगवान कृष्ण संसार का उद्धार करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेंगे तब कामदेव उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे । आज से कामदेव को अनंग नाम से जाना जाएगाा । यह लोगों के हृदय में निवास करेंगे । फिर महादेव ने देवी रति से कहा कि अब तुम पृथ्वी पर जाओ और माया देवी के रूप में पृथ्वी पर निवास करो और कामदेव की प्रतीक्षा करो ।

प्रद्युम्न के जन्म की कथा

श्री कृष्ण और देवी रुक्मणी 

श्री  कृष्ण और देवी रुक्मणी बहुत आनंद से जीवन व्यतीत कर रहे थे । समय आने पर देवी रुक्मणी ने श्री कृष्ण के एक पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम प्रद्युम्न रखा गया । प्रद्युम्न अभी 7 दिन का ही था कि देव योग से शंबरासुर नाम का मायावी असुर द्वारिका में आया, जब उसने प्रद्युम्न को सेविका ग्रह में देखा तो वह उस पर मोहित हो गयाा ।

दानव शंबरासुर और प्रद्युम्न 

शंबरासुर उस 7 दिन के बालक का अपहरण करके अपने महल में ले गया । सर्वव्यापी कृष्ण से यह बात छिपी ना रह सकींं । परन्तु भविष्य को देख कर श्री कृष्ण ने इस घटना का उल्लेख किसी से नहीं किया । उस बालक को शंबरासुर ने अपनी पत्नी माया देवी को दे दिया । माया देवी उस दिव्य बालक को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई और बोली, यह किसका पुत्र है? कहां से आप इसे लेकर आए हो? 

शंबरासुर बोला, यह असुरों के शत्रु कृष्ण का पुत्र है । इस पर अत्यंत मोहित होने के कारण मैं इसे यहां ले आया हूं । माया देवी ने शंबरासुर से उस बालक को लिया और प्रेम पूर्वक उसके साथ खेलने लगी । तभी माया देवी को यह ज्ञात हो गया कि कामदेव ने ही उस बालक के रूप में नया जन्म लिया है । माया देवी को भगवान शिव की कही बातों का भी स्मरण आ गया ।

 माया देवी अत्यंत प्रसन्न हो गई थी उसने उस बालक की देखरेख के लिए एक धाय मां नियुक्त कीी । माया देवी ने रसायन विद्या और योग विद्या की सहायता से उस बालक को शीघ्र ही बड़ा कर दिया । माया देवी ने उस बालक को मायावी विद्या,  शास्त्र विद्या और शस्त्र विद्या का पूर्ण ज्ञान दिया ।

माया देवी द्वारा प्रद्युम्न को उसके पूर्व जन्म का स्मरण कराना 

बालक प्रद्युम्न नवयुवक बन चुका था और सभी विद्याओं में पारंगत हो गया था । तब माया देवी, प्रद्युम्न के पास गई और  प्रद्युम्न को उसके पिछले जन्म का स्मरण कराया । उसने बताया कि कैसे वह भगवान शिव की क्रोधाग्नि से भस्म हो गया था । उसने प्रद्युम्न को यह भी बताया कि वह रुक्मणी और श्री कृष्ण का पुत्र है । जब वह केवल 7 दिन का था तब मायावी शंबरासुर उसका अपहरण करके ले आया था ।

माया देवी ने प्रद्युम्न को यह भी कहा कि वह देवी रति है और भगवान शिव की आज्ञा से पृथ्वी लोक में माया देवी के रूप में निवास कर रही है । वह अपनी योगमाया से रोज एक स्त्री का सृजन करती है और शंबरासुर के पास भेज देती है जिससे शंबरासुर उसके रहस्य को नहीं जान पाया है ।

प्रद्युम्न और शंबरासुर के पुत्रों का युद्ध 

माया देवी की बात सुनकर प्रद्युम्न अत्यंत क्रोधित हो गए । प्रद्युम्न ने अपने बाणों से शंबरासुर की विजय पताका काट दी  । वह विजय पताका शंबरासुर के महल के बाहर लगी हुई थी । उसको काटना शंबरासुर को युद्ध का आवाहन देना था ।

विजय पताका कटने से शंबरासुर अत्यधिक क्रोधित हो गया और उसने अपने सौ पुत्रों को प्रद्युम्न के साथ युद्ध करने के लिए भेजा । शंबरासुर के पुत्रों और प्रद्युम्न के मध्य अत्यंत रोमांचकारी और भयानक युद्ध प्रारंभ हो गया । परंतु वीर प्रद्युम्न ने अकेले ही शंबरासुर के सौ पुत्रों का वध कर दिया ।
 

शंबरासुर की सेना से प्रद्युम्न का युद्ध 

अपने पुत्रों के वध से शंबरासुर अत्यधिक क्रोधित हो गया और वह अपने चार शक्तिशाली असुर धुर्धर, केतु माली, शत्रुहंता और प्रमदन के साथ अपनी एक बहुत बड़ी सेना लेकर युद्ध करने के लिए आया । वह अपने अजेय रथ पर बैठकर युद्ध करने के लिए आया जिसमें 1000 मृग जुते  हुए थे । शंबरासुर जब युद्ध करने के लिए निकला तो अत्यंत अपशकुन उत्पन्न हुए परंतु किसी भी अपशकुन की परवाह ना करते हुए शंबरासुर युद्ध के मैदान में आ गया ।

युद्ध के मैदान में शंबरासुर ने अपने चार प्रधान सेनापतियों और समस्त सेना को प्रद्युम्न के वध की आज्ञा दी । वीर प्रद्युम्न अकेले ही समस्त सेना के साथ लड़ रहे थे उन्होंने अपने दिव्य  बाणों से शंबरासुर की समस्त सेना को आहत कर दिया था । शंबरासुर के सैनिक युद्ध का मैदान छोड़कर भागने लगे । 

तब केतुमाली युद्ध करने के लिए आया और उसने अपना सहस्त्रार चक्र प्रद्युम्न पर चला दिया, परंतु प्रद्युम्न ने उसके सहस्त्रार चक्र को पकड़ लिया और वापस उसी पर दे मारा और उसका वध कर दिया । केतुमाली के वध से देवताओं ने आसमान से पुष्पों की वर्षा की ।
   
 केतुमाली के वध के उपरांत शंबरासुर के तीन अन्य सेनापति युद्ध करने के लिए आए परंतु भयानक और विस्मयकारी युद्ध के उपरांत वीर प्रद्युम्न ने उन सभी का वध कर दिया ।

शंबरासुर  वध

फिर असुर शंबरासुर अपनी समस्त मायावी शक्ति के साथ प्रद्युम्न से युद्ध करने के लिए आया । शंबरासुर ने प्रद्युम्न के साथ मायावी युद्ध प्रारंभ कर दिया था । उसने, प्रद्युम्न पर माया से वृक्षों और शिलाओं की वर्षा की जिसे प्रद्युम्न ने माया के द्वारा ही समाप्त कर दिया । 

जंगलों बाघ 

फिर शंबरासुर ने माया से सिंह हाथियों और अन्य जंगली जानवरों का समूह बनाया जो चारों तरफ से प्रद्युम्न को मारने के लिए दौड़े । माया देवी के द्वारा सिखाई हुई माया से प्रद्युम्न ने जानवरों के उन सभी समूहों को नष्ट कर दिया ।

अपनी सभी प्रकार की माया को नष्ट होता देख शंबरासुर सोच में पड़ गया कि मैं किस प्रकार इस वीर योद्धा प्रद्युम्न का वध करूं । फिर उसने महादेव के द्वारा दी हुई "पन्नगी" माया का प्रयोग किया । उस माया के प्रभाव से विषैले सर्प प्रद्युम्न को  डसने के लिए दौड़ेे, परंतु प्रद्युम्न ने सर्पों का नाश करने वाली  "सोपणि" माया का प्रयोग किया जिससे गरुड़ पक्षी वहां आ गए और उन्होंने सब सर्पों  को नष्ट कर दिया ।

गरुड़, सर्पों का वध करते हुए 

अपनी माया को नष्ट होता देख शंबरासुर पुनः सोच में पड़ गया कि मैं अपने इस शत्रु का वध कैसे करूं । तब शंबरासुर ने देवी पार्वती द्वारा दी हुई एक शक्ति स्वर्णमुद्र का प्रयोग करने का विचार किया । स्वर्णमुद्र, कालदंड के समान ही भयंकर शक्ति थी ।

यह देखकर देवराज इंद्र ने देवर्षि नारद को वैष्णवास्त्र दे कर प्रद्युम्न के पास भेजा । देवर्षि नारद ने वीर प्रद्युम्न को जाकर बताया कि जिस स्वर्णमुद्र का प्रयोग शंबरासुर अब करने वाला है इस शस्त्र को कोई भी अस्त्र काट नहीं सकता । यह देवी पार्वती द्वारा शंबरासुर को दिया हुआ अमोघ अस्त्र है । इसलिए तुम देवी पार्वती की स्तुति करो । देवर्षि नारद, प्रद्युम्न को उनके पिछले जन्म का स्मरण करा कर और देवराज इंद्र का दिया हुआ वैष्णवास्त्र देकर वहां से चले गए ।

प्रद्युम्न ने देवी पार्वती की अनेक प्रकार से स्तुति की । देवी पार्वती प्रसन्न हुई और वह युद्ध के मैदान में ही प्रकट हो गई । तब वीर प्रद्युम्न ने हाथ जोड़कर उनको कहा कि जब शंबरासुर स्वर्णमुद्र का प्रयोग करें तो वह उसके पास आकर पुष्पों का हार बन जाए । देवी पार्वती बोली, ऐसा ही होगा । 

देवी पार्वती 

जब शंबरासुर ने स्वर्णमुद्र का प्रयोग वीर प्रद्युम्न पर किया तब वह प्रद्युम्न के पास आकर पुष्पों का हार बन गया और उसके गले की शोभा बड़ाने लगा । यह असंभव कार्य देखकर दान   शंबरासुर आश्चर्यचकित रह गया । 

प्रद्युम्न मायावी असुर शंबरासुर का वध करते हुए 

प्रद्युम्न ने शंबरासुर पर वैष्णवास्त्र का प्रयोग किया, जिसके प्रभाव से शंबरासुर मृत्यु को प्राप्त हुआ । देवताओं ने आसमान से पुष्पों की वर्षा की । उन्होंने कहा कि शंबरासुर का वध तो देवताओं के लिए भी संभव नहीं था । उन्होंने वीर प्रद्युम्न की बहुत प्रशंसा की । 

प्रद्युम्न का देवी माया के साथ द्वारका जाना 

फिर प्रद्युम्न ने माया देवी को साथ लेकर द्वारका की ओर प्रस्थान किया । द्वारिका वासियों ने सोचा कि कोई दिव्य पुरुष और स्त्री उनके नगर में आए हैं । परंतु सबके मन का हाल जानने वाले श्री कृष्ण ने देवी रुक्मणी को बताया कि वह उनका पुत्र प्रद्युम्न है । 

प्रद्युम्न देवी रति के साथ द्वारका जाते हुए 

वह अपनी पत्नी रति के साथ द्वारका आया है । प्रद्युम्न को देखकर रुक्मणी का मन प्रसन्नता से भर गया । देवी रुक्मणी ने अपने पुत्र प्रद्युम्न और पुत्र वधू रति का बहुत आदर सत्कार किया । समस्त द्वारकावासी प्रद्युम्न के आगमन से बहुत प्रसन्न थेे ।

                                 ।। इति श्री ।। 

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